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दूसरा मार्ग ।
देवसेनाचार्य 'तत्वसारमें कहते हैं
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ageमाणा दिट्ठा जीवा सब्वेवि तिडुणणत्यादि । बो मज्झत्यो जोई ण य तूसह व रूसे ॥ भावार्थ - जो योगी अपने समान तीन लोकके जीवों को देखकर मध्यस्थ या वैराग्यवान रहता है-न वह किसीपर क्रोध करता है में किसीपर हर्ष करता है ।
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(१७) मज्झिमनिकाय अलगद्दमय सूत्र ।
गौतमबुद्ध कहते हैं - कोई २ मोष पुरुष गेय, व्याकरण, गाथा, उदान, इतिवृत्तक, जातक, अद्भुत धर्म, वैदल्प, इन नौ प्रकारके धर्मोपदेशको धारण करते है वे उन धर्मोको धारण करते भी उनके ast प्रज्ञासे नहीं परखते हैं । अर्थोको प्रज्ञासे परखे विना धर्मोका भाशय नहीं समझते। वे या तो उपारंग (सहायता) के लाभ के लिये धर्मको धारण करते हैं या बादमें प्रमुख बनने के लाभके लिये धर्मको धारण करते हैं और उसके अर्थको नहीं अनुभव करते हैं । उनके लिये यह विपरीत तरहसे धारण किये धर्म अहित और दुःखके लिये होते हैं । जैसे भिक्षुओ ! कोई अलगद (सांप) चाहनेवाला पुरुष अलगद्दकी खोज में घूमता हुआ एक महान् अलगद्दको पाए और उसे देहसे या पूंछ से पकड़े, उसको वह अलगद्द उलटकर हाथमें, बांहमें या अन्य किसी अंग में डंस ले । वह उसके कारण मरणको या मरणसमय दुःखको प्राप्त होवे, ऐसे ही वह भिक्षु ठीक न समझनेवाला दुःख पावेगा ।
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