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दुसरा भाग। कंधेपर रखकर जहां इच्छा हो वहां जाऊं तो क्या ऐसा करनेवाला उस बेड़े कर्तव्य पालनेवाला होगा ? नहीं। किंतु वह उस बेड़ेसे दुःख उठानेवाला होगा। परन्तु यदि पारंगत पुरुषको ऐसा होक्यों न मैं इस बेड़े को स्थलपर रखकर या पानीमें डालकर जहां इच्छा हो वहां जाऊं तो भिक्षुओ ! ऐसा करनेवाला पुरुष उस बेड़े के सम्बन्धमें कर्तव्य पालनेवाला होगा। ऐसे ही भिक्षुओ ! मैंने बेडेकी भांति विस्तरणके लिये तुम्हें धर्मोको उपदेशा है, पकड रखनेके लिये नहीं । धर्मको बेड़े के समान ( कुरलूमम ) उपदेश जानकर तुम धमको भी छोड दो. अधर्मकी तो बात ही क्या ?
भिक्षुओ ! ये छः दृष्टि-स्थान हैं । आर्यधर्मसे अज्ञानी पुरुष रूप (Matter) को 'यह मेग है' 'यह मैं हूँ' 'यह मेरा आत्मा है। इस प्रकार समझता है इसी नम्ह (२) वेदनाको, (३) संज्ञाको. (४) संस्कारको, (५) विज्ञानको, (६) जो कुछ भी यह देखा, सुना, यादमें आया, ज्ञात, प्राप्त, पर्योषित (खोना), और मन द्वारा मनुविचारित (पद र्थ) है उसे भी · यह मेरा है ' ' यह मैं हूं' * यह मेरा आत्मा है' इस प्रकार समझता है । जो यह (छः) दृष्टि स्थान हैं सो लोक है. सोई आत्मा है, मैं मरकर सोई नित्य, ध्रुव, शाश्वत, निर्विकार (मविपरिणाम धर्मा, आत्मा होऊँगा और अनन्त वर्षोंतक वैसा ही स्थित रहूंगा । इमे भी यह मेरा है। यह मैं हूं' 'यह मेरा आत्मा' है इस प्रकार समझता है।
परन्तु भिक्षुओ ! आर्य धर्मसे परिचित ज्ञानी भार्य श्रावक (१) रूपको 'यह मेरा नहीं' 'यह मैं नहीं हूं' 'यह मेरा आत्मा
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