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मैन बौद तत्वज्ञान । [१७ मार्ग है। इससे बचने के लिये श्रीगुरुने दयालु होकर उपदेश दिया कि विषयराग छोड़ो, निर्वाणके प्रेमी बनो और अष्टांग मार्ग या सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान व सम्यक्चारित्र इस स्नत्रय मार्गको पालो, सथा निर्वाणका श्रद्धान व ज्ञान रक्खो, हितकारी संसारनाशक वचन बोलो, ऐसी ही क्रिया करो, शुद्ध निदोष भोजन करो, शुद्ध भावके लिये उद्योग या व्यायाम करो, निर्वाणतत्वका स्मरण करो व निर्वा•णभावमें या मध्यात्ममें एकाग्र होकर सम्यकसमाधि भजो । यही भविबाके नामका व विधाके प्रकाशका मार्ग है, यही निर्वाणका उपाय है। मात्मध्यानके लिये प्रमाद रहित होकर एकांत सेवनका उपदेश दिया गया है।
जैन सिद्धांत में इस कथन संबन्धी नीचे लिखे वाक्य उपयोगी हैसमयसारजीमें श्री कुंदकुंदाचार्य कहते हैं:णादण भासवाणं असुचित्तं च विवरीयमावं च । दुक्खस्स कारणं ति य तदो णियति कुणदि जीवो ॥७॥
मावार्ष-ये रागद्वेषादि भासव भाव अपवित्र हैं, निर्वाणसे विपरीत हैं व संसार-दुःखोंके कारण हैं ऐसा जानकर जानी जीव इनसे अपनेको अलग करता है। जब भीतर क्रोध, मान, माया लोभ या रागद्वेष उठ खड़े होते हैं अध्यात्मीक पवित्रता निगढ़ जाती है, गन्दापना या मशुचिपना होजाता है। मफ्ना स्वभाव तो शांत है, इन रागद्वेषका स्वभाव मशांत है, इससे वे विपरीत हैं। अपना स्वभाव मुखमई है, रागद्वेष वर्तमानमें भी दुःख देते हैं, वे भविष्य मशुभ कर्मबंधका दुःखदाई फल प्रगट करते हैं। ज्ञानीको ऐसा विचारना चाहिये।
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