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जैन बोर्ड स्थान |
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नोट - इस सूत्र में रागद्वेष मोहके दूर करनेका विधान है । वास्तवमे निमित्तोंके आधीन भाव होते हैं, भावोंकी सम्हाळके लिये निमित्तोंको बचाना चाहिये। यहां पांच तरहसे निमित्तोंको टाकनेका उपदेश दिया है । (१) जब बुरे निमित्त हों जिनसे रागद्वेष मोह होता है तब उनको छोड़कर वैराग्यके निमित्त मिलावे जैसे स्त्री, नपुंसक, बालक, श्रृंगार, कुटुम्बादिका निमित्त छोड़कर एकान्त सेवन, वन निवास, शास्त्रस्वाध्याय, साधुसंगतिका निमित्त मिलावे तब वे बुरे भाव नाश होजावेंगे 1
(२) बुरे निमित्तोंके छोड़ने पर भी अच्छे निमित्त मिलाने पर भी यदि रागद्वेष मोह पैदा हों तो उनके फल्को विचारे कि इनसे मेरेको यहां भी कष्ट होगा, भविष्य में भी कष्ट होगा, मैं निर्वाण मार्गसे दूर चला जाऊंगा । ये माव अशुद्ध हैं. त्यागने योग्य हैं । ऐसा बार बार विचारने से वे रागादि भाव दूर होजायेंगे ।
(३) ऐसा करनेपर भी रागद्वेषादि भाव पैदा हों तो उनको स्मरण नहीं करना चाहिये । से ही वे मनमें आवें मनको हटा लेना चाहिये । मनको तत्व विवारादिमें लगा देना चाहिये ।
( ४ ) ऐसा करनेपर भी यदि रागद्वेष, मोह पैदा हो तो उनके संस्कार के कारणोंको विचार करे। इसतरह धीरे२ वे रागादि दूर हो जायँगे ।
(५) ऐसा होते हुए भी यदि रागादि भाव पैदा हो तो बलाकार चित्तको हट कर तत्ववि वाग्में लगानेका अभ्यास करना चाहिये । पुनः पुनः उत्तम मार्वोके संस्कारसे बुरे भावोंके संस्कार मिट जाते हैं।
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