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दुसरा भाग। मावार्थ-मध्यात्मका ज्ञाता मुनि वारवार सम्यम्झानको फैला. कर जैसे पदार्थोका स्वरूप है वैसा उनको देखता हुमा रागद्वेषको दूर करके आत्माको ध्याता है।
तत्वानुशासनम कहा हैन मुह्यति न संशेते न स्वार्थानध्ययस्यति । न रज्यते न च तुष्टि किंतु स्वस्थः प्रतिक्षण ।। २३७ ।।
भावार्थ-जानी न तो मोह करते हैं, न संशय करते हैं, न ज्ञानमें प्रमाद लाते हैं, न राग करते हैं, न द्वेष करते हैं, किंतु सदा अपने शुद्ध स्वरूपमें स्थित होकर सम्यक् समाधिको प्राप्त करते हैं।
शानागबम कहा हैबोध एव दृढः पाशो हषोक मृगमन्बने । गारुश्च महामंत्र: चित्रभोगिविनिग्रहे ॥ १४-७॥
भावार्थ-इन्द्रियरूपी मृगोंको बांधने के लिये सम्यग्ज्ञान ही हद " फांसी है तथा चिसरूपी सर्पको वश करने के लिये सम्यग्ज्ञान ही गारुडी मंत्र है।
(१५) मज्झिमनिकाय वितर्क संस्थान सूत्र ।
गौतम बुद्ध कहते हैं-मिक्षुको पांच निमितोंको समय समय पर मनमें चिन्तवन करना चाहिये।
(१) भिक्षुको उचित है जिस निमित्त को लेकर, जिस निमिको मनमें करके रागद्वेष मोहवाले पापकारक अकुशल वितर्क (भाव) उत्पन होते हैं, उस निमित्तको छोड़ दूसरे कुशल निमितको मनमें
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