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दूसस माग। जानकी प्राप्तिके लिये सात बातोंकी जरूरत है। यह परमज्ञान विज्ञानसे भिन्न है, यह परमज्ञान निर्वाणका साधक व स्वयं निर्वाण रूप है। इससे साफ झलकता है कि निर्वाण मभावरूप नहीं है किंतु परमज्ञान स्वरूप है । वे सात बातें हैं-(१) स्मृति-तत्वका स्मरण निर्वाण स्वरूपका स्मरण, (२) धर्म विचय-निर्वाण साधक धर्मका विचार, (३) वीर्य-आत्मबलको व उत्साहको बढ़ाकर निर्वाणका साधन करे । (४) प्रीति-निर्वाण व निर्वाण साधनमें प्रेम हो, (५) प्रश्रब्धि-शांति हो राग द्वेष मोह हटाकर मावोंको सम रखे, (६) समाधि-ध्यानका अभ्यास करे, (७) उपेक्षा-वीतरागता-जब वीतरागता माजाती है तब स्वास्मरमण होता है । यही परम ज्ञानकी प्राप्तिका खास उपाय है।
तत्वानुशासनमें कहा हैसोऽयं समरसीभावस्तदेकीकरणं स्मृतं । एतदेव समाधिः स्याल्लोकद्वयफलप्रदः ॥ १३७ ॥ किमत्र बहुनोतेन ज्ञात्वा श्रद्धाय तत्त्वतः। ध्येये समस्तमप्येतन्माध्यस्थ्यं तत्र बिभ्रता ॥ १३८ । माध्यस्थ्य समतोपेक्षा घेराग्य साम्यमस्पृहः । पैतृष्ण्यं परमः शांतिरित्येकोऽर्थोऽभिधीयते ॥ १३९ ॥
मावार्थ-जो यह समरससे भरा हुमा भाव है उसे ही एकाग्रता कहते हैं, यही समाधि है। इसीसे इस लोकमें सिद्धि व परलोकमें सिद्धि प्राप्त होती है। बहुत क्या कहे-सर्व ही ध्येय वस्तुको भले प्रकार जानकर व श्रद्धानकर ध्यावे, सर्व पर माध्यस्थ भाव रखे। माध्यस्थ, समता, उपेक्षा, वैराग्य, साम्य, निस्पृहता,
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