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दूसरा I
आपकी एक निष्ठा है या पृथक् ? वे ठीकसे उत्तर देंगे एक निष्ठा है। फिर कहना क्या यह निष्ठा सरागके सम्बन्धमें है या वीतरागके सम्बन्ध में है वे ठीक से उत्तर देंगे कि वीतरागके सम्बन्धमें है, इसी तरह पूछने पर कि वह निष्ठा क्या सद्वेष, समोह, सतृष्णा, सउपादान (ग्रहण करनेवाले), अविद्वान, विरुद्ध, या प्रपंचाराम के सम्बन्धमें है या उनके विरुद्धों में है तब वे ठीकसे विचारकर कहेंगे कि वह निष्ठा वीतद्वेष, वीतमोह, वीत तृष्णा, अनुपादान, विद्वान, अविरुद्ध, निष्प्रपंचाराममें है। भिक्षुओ ! दो तरह की दृष्टियां हैं- (१) भव (संसार) दृष्टि, (२) विभव ( असंसार ) दृष्टि । जो कोई भवदृष्टि में लीन, भदट्टष्टको प्राप्त, भवदृष्टिमें तत्पर है वह विभव दृष्टिसे विरुद्ध है। जो विभवदृष्टिमें लीन विभवदृष्टिको प्राप्त, विभवदृष्टिमें तत्पर है वह भवदृष्टि से विरुद्ध है। जो श्रमण व ब्राह्मण इन दोनों दृष्टियों के समुदय ( उत्पत्ति ), अस्तगमन, आस्वाद आदि नव ( परिणाम ), निस्सरण ( निकास ) को यथार्थ या नहीं जानते वह सराग, सद्वेष, समोह, सतृष्णा, सउपादान, अविद्वान, विरुद्ध, प्रपंचरत है । जो श्रमण इन दोनों दृष्टियोंके समुदय आदिको यथार्थतथा जानते हैं वे वीतराग, वीतद्वेष, वीतमोह, वीततृष्णा, अनुषापान, विद्वान, अविरुद्ध तथा अप्रपंच रत हैं व जन्म, जरा, मरणसे छूटे हैं। ऐसा मैं कहता हूं ।
भिक्षुओ ! चार उपादान हैं - (१) काम ( इन्द्रिय भोग ) उपादान, (२) दृष्टि ( धारणा ) उपादान, (३) शीलबन उपादान, (४) आत्मवाद उपादान । कोई कोई श्रमण ब्राह्मण सर्व उपादान के त्यागका मत रखनेवाले अपनेको कहते हुए भी सारे उपादान त्याग
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