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__ " मूर्छ परिग्रहः ॥ १७ ॥ पर पदार्थोमे ममत्व भाव ही परिग्रह है। बाहरी पदार्थ ममत्व भावके कारण हैं इसलिये गृहस्थी प्रमाण करता है, साधु त्याग करता है । वे दश प्रकारके हैं।"क्षेत्रवास्तुहिरण्यसुवर्णधनधान्यदासीदासकुप्पप्रमाणातिकमा:" ॥२९॥
(१) क्षेत्र (भमि), (२) वास्तु (मकान), (३) हिरण्य (चांदी), (४) सुवर्ण (सोना जवाहरात), ५ धन (गो, भेंस, घोड़े, हाथी), ६ धान्य (अनाज), ७ दासी, ८ दास, ९ कुप्य (कपड़े), १० मांड (वर्तन) ___"अगार्यनगारश्च" । १९ । व्रती दो तरहके हैं-गृहस्थी (सागार) व गृहत्यागी (अनगार)।
___ "हिंसानृतस्तेयाब्रह्मपरिग्रहेभ्यो विरतिव्रतम् ॥१॥ " देशसवतोऽगुमहती" ॥२॥ "अणुक्तोऽगारी ॥ २० ॥
भावार्थ-हिंसा, असत्य, चोरी, कुशील (अब्रह्मा तथा परिग्रह, इनसे विरक्त होना व्रत है । इन पापोंको एकदेश शक्तिके अनुसार त्यागनेवाला अणुव्रती है। इनको सर्वदेश पूर्ण त्यागनेवाला महाव्रती है । अणुव्रती सागार है, महाव्रती अनगार है । अतएव अणुव्रती मल्ल सुखशांतिका भोगी है, महाव्रती महान सुखशांतिका भोगी है।
श्री समंतभद्राचार्य रत्नकरण्डश्रावकाचारमें कहते हैंमोहति मापहरणे दर्शनलाभादवाप्तसंज्ञानः ।
रागद्वेषनिवृत्त्यै चरणं प्रतिपद्यते साधुः ॥ ४७ ॥
भावार्थ-मिथ्यात्वके अंधकारके दूर हो जानेपर जब सम्यग्दर्शन तथा सम्यक्ज्ञानका लाम होजावे तब साधु राग द्वेषके हटाने के लिये चारित्रको पालते हैं।
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