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बैन बौद्ध तत्ववान। [१९ जीता है, भवको जीता है, कषायोंको जीता है, रति भाति के मोहका जिसने नाश किया है वही सदाकाल ध्यानमें उपयुक्त रह सक्ता है।
श्री शुभचंद्राचार्य ज्ञानार्णवम कहते हैंविग्म विरम संगान्मुंत्र मुंप्रपंचविसुत्र विसृज मोहं विद्धि विद्धि स्वतत्वम् ।। कल्य कलय वृत्तं पश्य पश्य स्वरूपं । कुरु कुरु पुरुषार्थ निवृतानन्दहेतोः ॥ ४५-१५॥
भावार्य-हे माई ! तु परिग्रहसे विरक्त हो, जगतके प्रपंचको छोड़, मोहको विदा कर, आत्मतत्वको समझ, चारित्रका अभ्यास कर, मात्मस्वरूपको देख, मोक्षके सुख के लिये पुरुषार्थ कर ।
(१४) मज्झिमनिकाय द्वेधा वितक सूत्र ।
गौतम बुद्ध कहते हैं-भिक्षुओ! बुद्धत्व प्राप्तिक पूर्व भी बोधिसत्व होते वक्त मेरे मन में ऐसा होता था कि क्यों न दो टुक वितर्क करते करते मैं विहरूं-जो काम वितर्क, व्यापाद (द्वेष) वितर्क, विहिंसा वितर्क इन तीनोंको मैंने एक भागमें किया और बो नैष्काम्य (काम भोग इच्छा रहिन) वितर्क, अल्पापाद वितर्क, अविहिंसा वितर्क इन तीनोंको एक भागमें किया। भिक्षुओ ! सो इस प्रकार प्रमाद रहित, भातापी ( उद्योगी), ग्रहितत्रा (मात्म संयमी) हो विहरते भी मुझे काम वितर्क उत्पन्न होता था। सो मैं : इस प्रकार जानता था । उत्पन्न हुआ यह मुझे काम वितर्क और यह भात्म आवाधाके लिये है, पर भावापाके लिये है, उभय भाषा
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