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दुसरा भाग
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इसलिये उसका चित्त तीव्र उद्योगके लिये नहीं झुकता । चार चेतोखिल तो ये हैं (५) सब्रह्मचारियोंके विषयमें कुपित, असंतुष्ट, दुषितचित होता है इसलिये उसका चित्त तीव्र उद्योग के लिये नहीं झुकता; ये पांच चेतोखिल हैं । इसी तरह जिस किसी भिक्षुके पांच चिचबंधन नहीं कटे होते हैं वह धर्म विनयमें वृद्धिको नहीं प्राप्त हो सकता ।
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पांच चितबंधन - (१) कामों ( कामभोगों) में अवीतराग, अबीतप्रेम, अविगत पिपास, अविगत परिदाह, अविगत तृष्णा रखना, (२) कायर्षे तृष्णा रखना, (३) रूपमें तृष्णा रखना ये तीन चितबंधन हैं, (४) यथेच्छ उदरभर भोजन करके शय्या सुख, स्पर्श सुख, आलस्य सुखमें फंसा रहना यह चौथा है, (५) किसी देवनिकाय देवयोनिका प्रणिधान ( दृढ़ कामना) रखके ब्रह्मचर्य आचरण करता है । इस शील, व्रत, तप, या ब्रह्मचर्य से मैं देवता या देवता में से कोई होऊं यह पांचमां चित्त बंधन है ।
इसके विरुद्ध - जिस किसी भिक्षुके ऊपर लिखित पांच चेतो. खिल प्रहीण हैं, पांच चित्तबन्धन समुच्छिन्न हैं, वह इस धर्ममें वृद्धिको प्राप्त होगा यह संभव है ।
ऐसा भिक्षु (१) छन्दसमाधि प्रधान संस्कार युक्त ऋद्धिवादकी भावना करता है, (२) वीर्यसमाधि प्रधान संस्कार युक्त ऋद्धिपादकी भावना करता है, (३) चित्तसमाधि प्रधान संस्कार युक्त ऋद्धिपादकी भावना करता है, (४) इंद्रियसमाधि प्रधान संस्कार युक्त ऋद्धिपादकी भावना करता है, (५) विमर्श (उत्साह) समाधि
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