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दूसा मामा सफेद होगए हैं। यही रूपका आदिनव है। जो पहले सुंदर थी सो अब ऐसी होगई है। फिर उसी भगिनीको देखा जाये कि वह रोगसे पौड़ित है, दुःखित है, मक मुत्रसे लिपी हुई है, दूसरोंके द्वारा उठाई जाती है, सुलाई जाती है । यह वही है जो पहले शुभ थी। यह है रूपका आदिनव । फिर उसी भगिनीको मृतक देखा जावे जो एक या दो या तीन दिनका पड़ा हुआ है। वह काक. गृद्ध, कुत्ते, शृगाल आदि प्राणियोंसे खाया जारहा है । हड्डी, मांस, नसें मादि अलगर हैं । सर मलग है, धड़ अलग है । इत्यादि दुर्दशा यह सब रूपका आदिनव या दुष्परिणाम है।
(५) क्या रूपका निस्सरन-सर्व प्रकारके रूपोंसे रागका परित्याग यह है रूपका निस्सरण।
जो कोई श्रमण या ब्राह्मण इसतरह रूपका आस्वाद नहीं करता है, दुष्परिणाम तथा निस्सरण पर्याय रूपसे जानता है वह अपने भी रूपको वैसा जानेगा, परके रूपको भी वैसा जानेगा।
(६) क्या है बेदनाओंका आस्वाद-यहां भिक्षु कामोंसे विरहित, बुरी बातोसे विरहित सवितर्क सविचार विवेकसे उत्पन्न प्रीति और सुखवाले प्रथम ध्यानको प्राप्त हो विहरने लगता है। उस समय वह न अपनेको पीड़ित करनेका ख्याल रखता है न दुसरेको न दोनोंको, वह पीड़ा पहुंचानेसे रहित वेदनाको अनुभव करता है। फिर वही भिक्षु वितर्क और विचार शांत होनेपर भीतरी शांति और चित्तकी एकाग्रतावाले वितर्क विचार रहित प्रीति सुखबाले द्वितीय ध्यानको प्राप्त हो विहरता है। फिर तीसरे फिर चौथे
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