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जैन बौद्ध तत्वज्ञान । [१०३ णके अमृतमई रसके ही प्रेमी होते हैं । ऐसे ज्ञानी कामरागसे छूट जाते हैं।
जैन सिद्धांतमें इन काम भोगोंकी तृष्णासे बुराईका व इनके त्यागका बहुत उपदेश है । कुछ प्रमाण नीचे दिया जाते हैं
सार समुच्चयमें कुलभद्राचार्य कहते हैं
वरं हालाहलं भुक्तं विष तद्भवनाशनम् ।। __न तु भोगविष भुक्तमनन्तभवदुःखदम् ॥ ७६ ॥
भावार्थ-हालाहल विषका पीना अच्छा है, क्योंकि उसी जन्मका नाश होगा, परन्तु मोगरूपी विषका भोगना अच्छा नहीं, जिन भोगोंकी तृष्णासे यहां भी बहुत दुःख सहने पड़ते हैं और पाप बांधकर परलोक में भी दुःख भोगने पड़ते हैं।
अग्निना तु प्रदग्बानां शमोस्तोति यतोऽत्र वै। स्मरवन्हिप्रदग्धानां शमो नास्ति भवेष्वपि ॥ ९२॥
भावार्थ-अमिसे जलनेवालोंकी शांति तो यहां जलादिसे हो जाती है परन्तु कामकी ममिसे जो जलते हैं उनकी शांति भव भवमें नहीं होती है।
दुःखानामाकरो यस्तु संसारस्य च वर्धनम् । स एव मदनो नाम नराणां स्मृतिसूदनः ॥९६ ॥
भावार्थ:-जो कई दुःखोंकी खान है, जो संसार भ्रमणको , बढ़ानेवाला है, वह कामदेव है। यह मानवोंकी स्मृतियोंको भी नाश करनेवाला है।
चित्तसंदूषणः कामस्तथा सद्गतिनाशनः । सत्यध्वंसनश्चासौ कामोऽनर्थपरम्परा ॥ १.३॥
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