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न चौद्ध तत्वज्ञान । [९१ सर्वद्वन्दविनिमुक्तं स्थानमात्मस्वभावजम् । प्राप्त परमनिर्वाण येनासो सुगतः स्मृतः॥ ४१ ॥
भावार्थ-जिसने कर्मोंमें महान योद्धः स्वरूप रागद्वेषादिको जीत लिया है व जो जन्म मरणके चक्रसे छूट गया है वह जिन कहलाता है। जिसने केवलज्ञान रूपी बोषसे तीन लोकको जान लिया व जो अनन्त ज्ञानसे पूर्ण है उस बुद्धको में नमन करता हूं। जिसने सर्व उपाधियोंसे रहित मात्मीक स्वभावसे उत्पन्न परम निर्वाणको प्राप्त कर लिया है वही सुगत कहा गया है।
धर्मध्यानका स्वरूप तत्वानुशासनमें कहा हैसदृष्टिलान्वृत्तानि धर्म मेश्वग विदुः। तस्माद्यढनपेतं हि धम्य तद्धयानमभ्यधुः ॥ ११॥ आत्मन: परिणामो यो मोहक्षोभविवर्जितः। स च धर्मोपेत यत्तस्मात्तद्धर्यमित्यपि ॥ १२ ॥
भावार्थ-सम्यग्दर्शनज्ञान चारित्रको धर्मके ईश्वरोंने धर्म कहा है। ऐसे धर्मका जो ध्यान है सो धर्मध्यान है । निश्चयसे मोह व क्षोभ ( रागद्वेष ) रहित जो आत्माका परिणाम है वही धर्म है, ऐसे धर्मसहित ध्यानको धर्मध्यान कहते हैं। ___आत्मा निर्वाण स्वरूप है, मोह रागद्वेष रहित है ऐसा श्रद्धान सम्यग्दर्शन है व ऐसा ज्ञान सम्यग्ज्ञान है व ऐसा ही ध्यान सम्यक्चारित्र है। तीनोंका एकीकरण आत्माका वीतरागभाव मात्मतल्लीन रूप ही धर्म है। पुरुषार्थसिदयुपायमें कहा है
बद्धोद्यमेन नित्यं लब्ध्वा समयं च बोधिळामस्य । पदमवलम्ब्य मुनीनां कर्तव्यं सपदि परिपूर्णम् ॥२१॥
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