________________
नहीं करते । या तो केवल काम उपादान त्याग करते हैं बाकाम और इष्ट उपादान त्याग करते हैं या काम, दृष्टि और शीलवत उपादान त्याग करते है। किंतु मातवाद उपादानको त्याग नहीं करते क्योंकि इस बातको ठीकसे नहीं जानते ।
भिक्षुषो! ये चारों उपादान तृष्णा निदानवाले हैं, तृष्णा समुदयवाले हैं, तृष्णा जातिवाले हैं और तृष्णा प्रभववाले हैं।
तृष्णा वेदना निदानवाली है, वेदना स्पच निदानवाली है, स्पर्श षडायतन निदानवाला है। पढ़ायतन नाम-रूप निदानवाला है। नाम-रूप विज्ञान निदानवाला है। विज्ञान संस्कार निदानवाला है। संस्कार अवित्रा निदानवाले हैं।
भिक्षुओ ! जब मिक्षुकी अविद्या नष्ट होजाती है और विद्या उत्पन्न होजाती है। मविद्याके विरागसे, विद्याकी उत्पत्तिसे न काम उपादान पकड़ा जाता है न दृष्टि उपादान न शीलव्रत उपादान न मात्मवाद-उपादान पकड़ा जाता है। उपादानोंको न पकड़नेसे भयभीत नहीं होता, भयभीत न होनेपर इसी शरीरसे निर्वाणको प्राप्त होजाता है "जन्म क्षीण होगया, ब्रह्मचर्यवास पूरा होगया, करना था सो कर लिया, और अब यहां कुछ करनेको नहीं है-" यह जान लेता है।
नोट-इस सुत्रमें पहले चार बातोंको धर्म बताया है
(१) शास्ता (देव) में श्रद्धा, (२) धर्ममें श्रद्धा, (३) शीलको पूर्ण पालना, (४) साधर्मीसे प्रीति ।
फिर यह बताया है कि जिसकी श्रद्धा चारों धर्मोमें होगी - उसकी श्रद्धा ऐसे शास्ता व धर्ममें होगी, जिसमें राग नहीं, द्वेष
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com