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जैन बौद्ध तत्वज्ञान। चार स्मृति प्रस्थानोंको मनन करेगा वह अरहंत पदका साक्षात्कार करेगा । उसको सत्यकी प्राप्ति होगी, वह निर्वाणको प्राप्त करेगाव निर्वाणको साक्षात् करेगा । इन वाक्योंसे निर्वाणके पूर्वकी अवस्था जैनोंके महंत पदसे मिलती है और निर्वाणकी अवस्था सिद्ध पदसे मिलती है । जैनोंमें जीवनयुक्त परमात्माको अरहन्त कहते हैं जो सर्वज्ञ वीतराग होते हुए जन्म भग्तक धर्मोपदेश करते हैं। वे ही जब शरीर रहित व कर्म रहित मुक्त होजाते हैं तब उनको निर्वाणनाथ या सिद्ध कहते हैं। यह सूत्र बड़ा ही उपकारी है व जैन सिद्धांतसे बिलकुल मिल जाता है।
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(९) मज्झिमनिकाय चूलसिंहनाद सूत्र ।
गौतम बुद्ध कहते हैं-भिक्षुओ होसक्ता है कि अन्य तैर्थिक ( मतवाले ) यह कहें। आयुष्मानोंको क्या माश्वास या बल है जिससे यह कहते हो कि यहां ही श्रमण हैं। ऐसा कहनेवालोंको तुम ऐसा कहना-भगवान जाननहार, देखनहार, सम्यक् सम्बुद्धने हमें चार धर्म बताए हैं। जिनको हम अपने भीतर देखते हुए ऐसा कहते हैं 'यहां ही श्रवण है। ये चार धर्म हैं-(१) हमारी शास्वामें श्रद्धा है, (२) धर्ममें श्रद्धा है, (३) शील (सदाचार में परिपूर्ण करनेवाला होना है, (४) सहधर्मी गृहस्थ और प्रवजित हमारे प्रिय हैं।
हो सकता है अन्य मतानुवादी कहे कि हम भी चारों बातें मानते हैं तब क्या विशेष है। ऐसा कहनेवालोंको कहना क्या
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