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दूसरा भाग ।
जानता है कि कैसे उत्पन्न हुआ है तथा यदि वर्तमानमें इन छः विषयोंका मल नहीं है तो वह आगामी किन कारणोंसे पैदा होता हैं उनको भी जानता है तथा जो उत्पन्न मक है वह कैसे दूर हो इसको भी जानता है तथा नाश हुआ राग द्वेष फिर न पैदा हो उसके लिये क्या सम्हाल रखनी इसे भी जानता है । यह स्मृति इन्द्रिय और मनके जीतनेके लिये बड़ी ही आवश्यक है ।
निमियोंको बचानेसे ही इन्द्रिय सम्बन्धी राग हट सक्ता है। यदि हम नाटक, खेल, तमाशा देखेंगे, श्रृंगार पूर्ण ज्ञान सुनेंगे, अत्तर फुलेल सूंघेंगे, स्वादिष्ट भोजन रागयुक्त होकर ग्रहण करेंगे, मनोहर वस्तुओंको स्पर्श करेंगे, पूर्वरत भोगोंको मनमें स्मरण करेंगे व आगामी भोगोंकी वांछा करेंगे तब इन्द्रिय विषय सम्बन्धी राग द्वेष दूर नहीं होता । यदि विषय राग उत्पन्न होजाये तो उसे मल जानकर उसके दूर करने के लिये आत्मतत्वका विचार करे । आगामी फिर न पैदा हो इसके लिये सदा ही ध्यान, स्वाध्याय, व तत्व मनन व सत्संगति व एकांत सेवनमें लगा रहे ।
जिसको आत्मानन्दकी गाढ रुचि होगी वह इन्द्रिय वचन सम्बन्धी मलसे अपने को बचा सकेगा । ध्यानीको स्त्री पुरुष नपुंसक रहित एकांत स्थानके सेवनकी इसीलिये आवश्यक्ता बताई है कि इन्द्रियों के विषय सम्बन्धी मळ न पैदा हों ।
तत्वानुशासनम कहा है
शून्य गारे गुहायां वा दिवा वा यदि वा निशि । स्त्रीपशुको जीवानां क्षुद ण मप्यगोवरे ॥ ९० ॥
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