________________
१.]
दूमरा माग। जब भार्य श्रावक नामरूपको, उसके समुदयको, उसके निरोधको व निरोधके उपायको जानता है तब वह सम्यग्दृष्टि होता है-(१) वेदना-(विषय और इन्द्रियके संयोगसे उत्पन्न मन पर प्रथम प्रमाव ), (२) संज्ञा-( वेदनाके अनन्तरकी मनकी अवस्था ), (३) चेतना-(संज्ञाके अनन्तरकी मनकी अवस्था ), (४) स्पर्शमन सिकार ( मनपर संस्कार ) यह नाम है। चार महाभूत (पृथ्वी, जल, भाग, वायु) और चार महाभूतोंको लेकर (वन) रूप कहा जाता है । विज्ञान समुदय नाम-रूप समुदय है, विज्ञान निरोध नामरूप निरोध है, उसका उपाय यही माष्टांगिक मार्ग है।
जब आर्य श्रावक विज्ञानको, विज्ञानके समुदयको, विज्ञान निरोधको व उसके उपायको जानता है तब वह सम्यग्दृष्टि होता है । छः विज्ञानके समुदाय ( काय ) हैं-(१) चक्षु विज्ञान, (२) श्रोत्र विज्ञान, (३) घ्रण विज्ञान, (४) जिह्वा विज्ञान, (५) काय विज्ञान, (६) मनो विज्ञान । संस्कार समुदय विज्ञान समुदय है। संस्कार निरोध-विज्ञान निरोध है। उसका उपाय यह आष्टांगिक मार्ग है।
जब आर्य श्रावक संस्कागेको, संस्कारोंके समुदयको, उनके निरोधको, उसके उपायको जानता है तब वह सम्यग्दृष्टि होता है । संस्कार (क्रिया, गति) तीन हैं-(१) काय संस्कार, (२) वचन संस्कार, (३) चित्त संस्कार । अविद्या समुदय-संस्कार समुदय है, अविद्या निरोध संस्कार निरोध है । उसका उपाय यही माष्टांगिक मार्ग है।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com