________________
७१)
दूसरा माग। प्रगद करते हैं कि निर्वाण कोई मस्तिरूप पदार्थ है जो प्राप्त किया जाता है या जिसका साक्षात्कार किया जाता है। वह अभाव नहीं है। कोई भी बुद्धिमान अभावके लिये प्रयत्न नहीं करेगा। वह मस्ति रूप पदार्थ सिवाय शुद्धात्माके और कोई नहीं होसक्ता है। वही अज्ञात, अमर, शांत, पंडित वेदनीय है । जैसे विशेषण निर्वाणके सम्बन्धमें बौद्ध पाली पुस्तकोंमें दिये हुए हैं।
___ ये चारों स्मृति प्रस्थान जैन सिद्धांतमें कही हुई बारह अपेक्षाओंमें गर्भित होजाती हैं। जिनक नाम भनित्य, मशरण मादि सर्वानव सूत्र नामके दूसरे अध्यायमें कहे गए हैं।
(१) पहला स्मृति प्रस्थान-शरीरके सम्बन्धमें है कि वह साधक पवन संचार या प्राणायामकी विधिको जानता है। शरीरके भीतर-बाहर क्या है, कैसे इसका वर्ताव होता है । यह मल, मूत्र तथा रुधिरादिसे भरा है। यह पृथ्वी आदि चार धातुओंसे बना है। इसके नाशको विचार कर शरीरसे उदासीन होजाता है । न शरीर. रूप मैं हूं न यह मेरा है । ऐसा वह शरीरसे अलिप्त होजाता है ।
जैन सिद्धांतमें बारह भावनामोंके भीतर अशुचि भावनामें यही विचार किया गया है।
श्री देवसेनाचार्य तत्त्वसारमें कहते हैंमुक्खो विणासरूवो चेयणपरिवजिमो सयादेहो । तस्स ममत्ति कुणतो बाहिरप्पा होइ सो जीमो ॥ ४८ ॥ रोय सदण पडणं देहस्स य पिच्छिऊण जरमरणं । जो मप्पाणं झायदि सो मुच्चइ पंच देहेहि ॥ ४९ ॥ भावाय-यह शरीर मूर्ख है, मज्ञानी है, नाशवान है, व सदा
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com