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दूसरा भाग।
चारि सरणं पव्वजामि-अरहंतसरणं पवजामि, सिद्धस्सरणं पध्वजामि, साहू सरणं पञ्चजामि, केवलिण्णत्तो धम्मो सरणं पयजामि ।
. चार मंगल हैं। अरहंत मंगल है, सिद्ध मंगल है, साधु मंगल है, केवलीका कहा हुआ धर्म मंगल (पापनाशक ) है । चार लोकमें उत्तम हैंअरहंत, सिद्ध, साधु व केवली कथित धर्म। चारकी शरण जाता हूंअरहंत, सिद्ध. साधु व केवली कथित धर्म ।
- धर्मके ज्ञानके लिये शास्त्रोंको पढ़कर दुःखके कारण व दुःख मेटने के कारणको जानना चाहिये। इसीलिये जैन सिद्धांतमें श्री उमास्वामीने कहा है-" तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनं ॥ २॥१ तत्व सहित पदार्थोंको श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन है। तत्व सात हैं" जीवाजीवास्रवबंधसंवरनिर्जरामोक्षास्तत्व" जीव, अजीव, भास्रव, बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष, इनसे निर्वाण पाने का मार्ग समझमें भाता है। मैं तो मजा. अमर, शाश्वत. अनुभव गोचर, ज्ञानदर्शनस्वरूप व निर्वाणमय अखण्ड एक अमूर्ती पदाथ हूं। यह जीव तत्व है। मेरे साथ शरीर सूक्ष्म और स्थूल तथा बाहरी जड़ पदार्थ, या भाकाश, काल तथा धर्मास्तिकाय (गमन सहकारी द्रव्य ) और अधर्मास्तिकाय (स्थिति सहकारी द्रव्य ) ये सब अजीव हैं, मुझसे भिन्न हैं।
कार्माण शरीर किन कर्मवर्गणाओं (Karmic molecules) से बनता है उनका खिंचकर पाना सो आस्रव है। तथा उनका सूक्ष्म शरीर के साथ बंधना बंत्र है। इन दोनों का कारण मन, वचन कायकी क्रिया तथा क्रोधादि कषाय हैं। इन भावों के रोकनेसे
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