________________
जैन बौद तत्वज्ञान।
[७१
कर रहा हूं" जानता है। दुख वेदनाको अनुभव करते हुए" दुखवेदना अनुभव कर रहा हूं" जानता है । अदुःख अमुख वेदनाको अनुभव करते हुए "अदुःख असुख वेदनाको अनुभव कर रहा हूं" जानता है।
(३) भिक्षु चित्तम चित्तानुपश्यी हो कसे विहरता हैवह सराग चित्तको " सराग चित्त है " जानता है। इसी तरह विराग चित्तको विराग रूप, सद्वेष चित्तको सद्वेष रूप, वीत द्वेषको वीत द्वेष रूप, समोह चित्तको समोहरूप, वीत मोह चित्तको वीत मोहरूप, इसी तरह संक्षिप्त, विक्षिप्त, महद्गत, अमहद्गत, उत्तर, अनुत्तर, समाहित, (एकाग्र), अप्महित, विमुक्त, अविमुक्त चित्तको जानकर विहरता है।
(४) भिक्षु धर्मोमं धर्मानुपश्यी हो कैसे विहरता है-भिक्षु पांच नीवरण धर्मोमें धर्मानुपश्यी हो विहरत है। वे पांच नीवरण हैं-(१) कामच्छन्द - विद्यमान कामच्छन्दकी, अविद्यमान कामच्छन्दकी, मनुत्पन्नकामच्छन्दकी कसे उत्पत्ति होती है। उत्पन्न कामच्छन्दका कैसे विनाश होता है। विनष्ट कामच्छन्दकी मागे फिर उत्पत्ति नहीं होती, जानता है। इसी तरह (२) व्यापाद (द्रोहको), (३) स्त्या-गृद्ध ( शरीर व मनकी अलसता ) को. (४) उदुचकुक्कुच्छ ( उद्वेग-खेद ) को तथा (५) विचिकित्सा ( संशय) को जानता है। यह पांच उपादान स्कंध धर्मोमे धर्मानुपश्यी हो विहरता है। वह अनुभव करता है कि यह (१) रूप है, यह रूपकी उत्पत्ति है। यह रूपका विनाश है, (२) यह वेदना -यह
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com