________________
-
जैन पौद सलमान। [३९ कम्पा है या वेष बुद्धिको छोड़कर माध्यस्थ भाव रखना वा बेरभाष छोडकर शल्य रहित या कषाय रहित होना भी अनुकम्पा है।
मास्तिक्यं तत्त्वसद्भावे स्वतः सिद्धे विनिश्चतिः । धर्मे हेतौ च धर्मस्य फले चाऽऽत्मादि धर्मवत् ॥ ४९२ ॥
भावार्य-स्वतः सिद्ध तत्वोंके सदभावमें, धर्ममें, धर्मके कारणमें, धर्मके फलमें निश्चय बुद्धि रखना भास्तिक्य है। जैसे भात्मा भादि पदार्थोके धर्म या स्वभाव हैं उनका वैसा ही श्रदान करना मास्तिक्य है।
तत्राय जीवसंज्ञो यः स्वसंवेश्चिदात्मकः । सोहमन्ये तु गगाथा हेयाः पौगलिका ममी ॥ ४५७ ॥
भावार्थ-यह जो नीव संज्ञाधारी भात्मा है वह स्वसंवेब (अपने भापको आप ही जाननेवाला) है, ज्ञानवान है, वही मैंई। शेष जितने रागद्वेषादि भाव हैं वे पुद्गलमयी हैं, मुझसे मिन्न है, त्यागने योग्य हैं, तब खोजियोंको उचित है कि जैन सिद्धांत देखकर सम्यग्दर्शनका विशेष स्वरूप समझें ।
(८) मज्झिमनिकाय स्मृतिप्रस्थानसूत्र ।
गौतम बुद्ध कहते हैं-भिक्षुओ! ये जो चार स्मृति प्रस्थान हैं वे सत्वोंके कष्ट मेटने के लिये, दुःख दौमनस्यके अतिक्रमणके लिये, सत्यकी प्राप्तिके लिये, निर्वाणकी प्राप्ति और साक्षात्कार करने के लिये मार्ग हैं। (१) काय काय-अनुपश्यी (शरीरको उसके असल स्वरूप केश, नख, मलमूत्र मादि रूपमें देखनेवाला),
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com