________________
जैन बौद्ध तत्वज्ञान |
6
सम्यक दृष्टि होता है । वेदनाके छः प्रकार हैं (१) चक्षु संस्पर्शजा ( चक्षु के संयोग से उत्पन्न ) वेदना, (२) श्रोत्र संस्पर्शजा वेदना, (३) प्राण संस्पर्शजा वेदना, (४) जिद्दा संस्पर्शजा वेदना, (५) काय संस्पर्शजा वेदना, (६) मनः संस्पर्शजा वेदना । स्पर्श (इन्द्रिय और विषयका संयोग ) समुदय ही वेदना समुदय है ( वेदनाका कारण है ।) स्पर्शनिरोधसे वेदनाका निरोध है । वही आष्टांगिक मार्ग वेदना विरोध प्रतिपद है ।
जब आर्य श्रावक स्पर्श (इन्द्रिय और विषय के संयोग ) को, स्पर्श समुदयको, उसके निरोधको, तथा निरोधगामिनी प्रतिपदको जानता है तब सम्यकदृष्टि होती है। स्पर्शके छः प्रकार हैं (१) चक्षुः - संस्पर्श (२) श्रोत्र - संस्पर्श, (३) घ्राण - संस्पर्श, (४) जिह्वा - संस्पर्श, (५) काय - संस्पर्श, (६) मन- संस्पर्श । षड् आयतन (चक्षु, श्रोत्र, घ्राण, जिह्ना, काय या तन तथा मन ये छः इन्द्रियां ) समुदय ही स्पर्श समुदय ( स्पर्शका कारण ) है । षडायतन निरोधसे स्पर्श निरोव होता है । वही अष्टांगिक मार्ग निरोधका उपाय है । जब आर्य श्रावक षडायतनको, उसके समुदयको, उसके निरोधको, उस निरोधके उपायको जानता है तब वह सम्यग्दृष्टि होता है । ये छः आयतन ( इन्द्रियां ) हैं - (१) चक्षु, (२) श्रोत्र, (३) प्राण, (४) जिह्वा, (५) काय, (६) मन । नामरूप ( विज्ञान और रूप Mind and Matter) समुदय षडायतन समुदय ( कारण ) है । नामरूप निरोध षडायतन निशेध है । वही अष्टांगिक मार्ग उस निरोधका उपाय है ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com