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जैनम्बौदामान। उत्पत्ति ), आहार विरोध और माहार निरोष गामिनी प्रतिपद, ( आहारके विनाशकी ओर लेजाने मार्ग) को जानता है तब वह सम्यग्दृष्टि होता है। इनका खुलासा यह है-सन्तोंकी स्थिति होनेकी सहायताके लिये भूतों (प्राणियों) के लिये चार आहार हैं-(१) स्थूल या सूक्ष्म कवलिंकार (ग्रास करके खाया जानेवाला) आहार, (२) स्पर्श, (३) मनकी संचेतना, (४) विज्ञान, तृष्णाका समुइय ही माहारका समुदय (कारण) है। तृष्णाका निरोध-आहारका निरोध है । आर्द-आतंगिक मार्ग आहार निरोधगामिनी प्रतिपद है जैसे (१) सम्यग्दृष्टि, (२) सम्यक् संकल्प, (३) सम्यक्वचन, (४) सम्यक् कर्मान्त (कर्म), (५) सम्यक् मानीव (भोजन), (६) सम्यक् व्यायाम (उद्योग), (७) सम्यक् स्मृति, (८) सम्यक् समाधि । जो इनको जानकर सर्वथा रागानुशमको परित्याग करता है वह सम्यग्दृष्टि होता है । जब आर्य श्रावक (१) दुःख, (२) दुःख समुदय (कारण), (३) दुःस्व निरोध, (४) दुःख निरोधगामिनी प्रतिपदको जानता है तब वह सम्यग्दृष्टि होता है । इसका खुलाशा यह है-जन्म, जरा, व्याधि, मरण, शोक, परिदेव (रोना), दुःख दौर्मनस्य (मनका संताप), उपायास (परेशानी) दुःख है। किसीकी इच्छा करके उसे न पाना भी दुःख है । संक्षेप पांचों उपादान (विषयके तौरपर ग्रहण करने योग्य रूप, वेदना, संज्ञा, संस्कार, विज्ञान) स्कंध ही दुःख है। वह जो नन्दी उन उन भोगोंको अभिनन्दन करनेवाली, रागसे संयुक्त फिर फिर जन्मनेकी तृष्णा है जैसे (१) काम (इन्द्रिय संभोग) की तृष्णा, (२) भव (जन्मने) की तृष्णा, • (३) विभव (धन) की.कृष्णा । वह दुःख समुदय (कारण) है।
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