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जैन बौद्ध तत्वज्ञान। जब आर्य श्रावक अविद्याको, मविद्या समुदय, मविद्या निरोधको व उसके उपायको जानता है तब वह सम्यग्दृष्टि होता है । दुःखके विषयमें अज्ञान, दुःख समुदयके विषयमें अज्ञान, दुःख निरोके विषयमें अज्ञान, दुःख निरोव गामिनी प्रतिपदके. विषयमें अज्ञान अविद्या है । आस्रव समुदय-अविद्या समुदय है । भास्रव निरोध, अविद्या निरोध है। उसक! आय यही आष्टांगिक मार्ग है । जब आर्य श्रावक आस्रव (चित्तमल) को, भास्रव समुद्यको, आस्रव निरोधको, उसके उपायको जानता है तब बह सम्पाटष्टि होता है। तीन आस्रव हैं-(१) काम मास्रव, (२) भव ( जन्मनेका ) भास्रव, (३) अविद्या मास्रव । अविद्या समुदय अस्रव समुदय है । अविद्या निरोध भास्रव निरोध है । यही आष्टांगिक मार्ग सुखका उपाय है।
इस तरह वह सब रागानुशुमय (रागमल) को दूरकर, प्रतिघ (प्रतिहिंसा) अनुशयको हटाकर, मस्मि ( मैं हू ) इस दृष्टिमान (धारणाके अभिमान ) अनुशयको उन्मूलन कर, अविद्याको नष्टकर, विद्याको उत्पन्न कर, इसी जन्ममें दुःखोंका अन्त करनेवाला होता है। इस तरह आर्य श्रावक सम्यक्ष्टि होता है। उसकी दृष्टि सीधी होती है। वह धर्ममें अत्यन्त श्रद्धावान हो इस सद्धर्मको प्राप्त होता है।
नोट-इस सूत्रमें सम्यग्दृष्टि या सत्य श्रद्धावानके लिये पहले ही यह बताया है कि वह मिथ्यात्वको तथा हिंसा, असत्य, चोरी, कुशील व लोभको छोड़े, तथा उनके कारणों को त्यागेर मारत.
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