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जैन बौद्ध तत्त्वज्ञान। वचन कायके द्वारा भाव प्राण और द्रव्य प्राणोंको कष्ट पहुंचाया जाय या घात किया जाम सो हिंसा है। ज्ञानदर्शन सुख शांति मादि भात्माके भाव प्राण हैं । इनका नाश भावहिंसा है । इंद्रिय, बल, आयु, श्वासोश्वासका नाश द्रव्यहिंसा है। पांच इन्द्रिय, तीन बल-मन, वचन, काय होते हैं । पृथ्वी, जल, क्षमि, वायु, वनस्पति, एकेंद्रिय प्राणियोंके चार प्रकार होते हैं। स्पर्शनइन्द्रिय, शरीरबल, भायु, श्वासोश्वास, द्वेन्द्रिय प्राणी लट, शंख भादिके छः प्राण होते हैं। ऊपरके चारमें रसनाइन्द्रिय व वचनबल बढ़ जायगा ।
तेन्द्रिय प्राणी चीटी, खटमल आदिके सात प्राण होते हैं। नाक बढ़ जायगी। चौन्द्रिय प्राणी मक्खी, भौंरा आदिके आठ प्राण होते हैं, आंख बढ़ जायगी, पंचेंद्रिय मन रहितके नौ प्राण होते हैं। कान बढ़ जायगे। पंचेंद्रिय मनसहितके दश होते हैं । मनबल बढ़ जायगा। __ प्रायः सर्व ही चौपाए गाय, भैंस, हिरण, कुत्ता, बिल्ली आदि सर्व ही पक्षी कबुतर, तोता, मोर आदि, मछलियां, कछुवा मादि, तथा सर्व ही मनुष्य, देव व नारकी प्राणियोंके दश प्राण होते हैं।
जितने अधिक व जितने मूल्यवान प्राणीका घात होगा उतना ही अधिक हिंसाका पाप होगा। इस द्रव्य हिंसाका मूल कारण भावहिंसा है। भावहिंसाको रोक लेनेसे अहिंसावत यथार्थ होजाता है।
जैसा कहा है-रागद्वेषादि भावोंका न प्रगट होना ही अहिंसा है । तथा उनका प्रगट होना ही हिंसा है यह जैनागमका संक्षेप . . कथन है। निर्वाण साधकके भावहिंसा नहीं होनी चाहिये ।
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