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जैन बौदासत्वचा जो स्वयं दान्त, विनीत, परिनिवृत्त है वह दुसरेको दान्त, विनीत, परिनिवृत्त करेगा यह संभव है। ऐसे ही हिंसक पुरुषके लिये अहिंसा परिनिर्वाण के लिये होती है। इसी तरह कार कही ४० बातोंको जानना चाहिये ।
यह मैंने सल्लेख पर्याय या चिंतुष्मद पर्याय या परिक्रमण पर्याय या उपरिभाव पर्याय या परिनिर्वाण पर्याय उरदेशा है । श्रावको (शियों) के हितैषी, अनुकम्पक, शास्ताको अनुकम्ग करके जो करना चाहिये वह तुम्हारे लिये मैंने कर दिया। ये वृक्षमूल हैं, ये सूने घ! हैं, ध्यानरत होओ, प्रमाद मत करो, पीछे अफसोस करनेवाले मत बनना । यह तुम्हारे लिये हमारा अनुशासन है ।
नोट-सल्ले व सूत्रका यह भभिनाय पगट होता है कि अपने दोषों को हटाकरके गुणों को प्राप्त करना । सम्यक् प्रकार लेखना या कृश करना सल्लेखना है। अर्थात् दोषों को दूर करना है। ऊपर लिखित ४० दोष वास्तवमें निर्माण के लिये बाधक हैं। इनहीके द्वारा संसारका भ्रमण होता है ।।
समयसार ग्रंथमें जैनाचार्य कुन्दकुन्दाचार्य कहते हैंसामण्णपच्चय। खलु चउरो भण्ग ते वचत्त रो। मिच्छत्तं भविरमण कसाय जोमा य बोद्धश्वः ॥ ११६॥
भावार्थ-कर्मबन्ध के कर्ता सामान्य प्रत्यय या आस्वभाव चार कहे गए हैं। मिथ्यादर्शन, भविरति, कषाय और योग । भापको आपरूप न विश्वास करके और रूप मानना तथा जो अपना नहीं है उसको अपना मानना मिथ्यादर्शन है। आप वह आत्मा है जो निर्वाण स्वरूप है, अनुभवगम्य है । वचनोंसे इतना ही कहा जा
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