________________
जैन यदि तीन । रहा हूं। लेकिन मार्य विनयमें इन्हें सल्लेख नहीं कहा जाता। मार्य विनयमें इन्हें इष्टधर्म-सुखविहार ( इसी जन्ममें सुखपूर्वक विहार) कहते हैं या शान्तविहार कहते हैं।
. किन्तु सल्लेख तप इस तरह करना चाहिये-(१) हम अहिंसक होंगे, (२) प्राणातिपातसे विरत होंगे, (३) भदत्त ग्रहण न करेंगे, (४) ब्रह्मचारी रहेंगे, (५) मृषावादी न होंगे, (६) पिशुनभाषी (चुगलखोर) न होंगे, (७) परुष (कठोर) भाषी न होंगे, (८) संप्रलापी (बकवादी) न होंगे, (९) अमिध्यालु (लोभी) न होंगे, (१०) व्यापन्न ( हिंसक) चित्त न होंगे, (११) सम्यकदृष्टि होंगे, (१२) सम्यक् संसधारी होंगे, (१३) सम्यकभाषी होंगे, (१४) सम्यक काय कर्म कर्ता होंगे, (१५) सम्यक् भाजीविका करनेवाले होंगे, (१६) सम्यक् व्यायामी होंगे, (१७) सम्यक् स्मृतिधारी होंगे, (१८) सम्यक् समाधिधारी होंगे, (१९) सम्यक्ज्ञानी होंगे, (२०) सम्यक् विमुक्ति भाव सहित होंगे, (२१) स्यानगृद्ध (शरीर व मनके मालस्य) रहित होंगे, (२२) उद्धत न होंगे, (२३) संशयवान होंगे, (२४) क्रोधी न होंगे, (२५) उपनाही (पाखंडी) न होंगे, (२६) मक्षी (कीनावाले) न होंगे, (२७) प्रदःशी (निष्ठुर) न होंगे, (२८) ईर्षारहित होंगे, (२९) मत्सरवान न होंगे, ३०) शठ न होंगे, (३१) मायावी न होंगे, (३२) स्तब्ध (जड़) न होंगे, (३३) भभिमानी न होंगे, (३४) सुवचनभाषी होंगे, (३५) कल्याण मित्र (भलोंको मित्र बनानेवाले) होंगे, (३६) अप्रमत्त रहेंगे, (३७. श्रद्धालु रहेंगे, (३८) निर्लज्ज .. न होंगे, (३९) मपत्रदी (उचितमय को माननेवाले) होंगे, (१०)
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com