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जैन बौद्ध तत्वज्ञान। इस बुद्ध सूत्रमें अंतमें यह बात बताई है कि जलके स्नानसे पवित्र नहीं होता है। जिसका आत्मा हिंसादि पापोंसे रहित है वही पवित्र है। ऐसा ही जैन सिद्धांतमें कहा है ।
सार समुच्चयमें कहा हैशीव्रतजले स्नातुं शुद्धिरस्य शरीरिणः । न तु स्नातस्य तीर्थेषु सर्वेष्वपि महीतले ॥ ३१२॥ रागादिवर्जितं स्नानं ये कुर्वन्ति दयापराः । तेषां निर्मळता योगेन च स्नातस्य वारिणा ॥ ३१३ ॥ मात्मानं स्नापयेन्नित्यं ज्ञाननारेण चारुणा । येन निर्मलतां याति जीवो जन्मान्तरेष्वपि ॥ ३१४॥ सत्येन शुद्धयते पाणी मनो ज्ञानेन शुद्धयति । गुरुशुश्रूषया कायः शुद्धिरेष सनातनः ।। ३१७ ॥
भावार्थ-इस शरीरधारी प्राणीकी शुद्धि शीलवत रूपी जकमें स्नान करनेसे होगी। यदि पृथ्वीमरकी सर्व नदियों में स्नान करले तो मी शुद्धि न होगी। जो दयावान रागद्वेषादिको दूर करनेवाले समभावरूपी जलमें स्नान करते हैं, उन हीके भीतर ध्यानमें निर्मलता होती है । जलमें स्नान करनेसे शुद्धि नहीं होती है। पवित्र ज्ञानरूपी जलसे आत्माको सदा स्नान कराना चाहिये । इस स्नानसे यह जीव परलोकमें भी पवित्र होजाता है । सत्य वचनसे वचनकी शुद्धि है, मनकी शुद्धि ज्ञानसे है, शरीर गुरुकी सेवासे शुद्ध होता. है, सनातनसे यही शुद्धि है।
हिताकांक्षीको यह तत्वोपदेश ग्रहण करने योग्य है ।
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