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जैन बौद तत्वान। [:३११ इनमेसे अंगण सहित दोनों व्यक्तियोंमें पहला व्यक्तिहीन है, दुसरा व्यक्ति श्रेष्ठ है जो अंगण है इस बातको ठीकसे जानता है। इसी तरह अंगण रहित दोनों से पहला हीन है। दुसरा श्रेष्ठ है जो अंगण नहीं है इस बातको ठीकसे जानता है। इसका हेतु यह है कि जो व्यक्ति अपने भीतर अंगण है इसे ठीकसे नहीं जानता है। यह उस अंगणके नाशके लिये प्रयत्न, उद्योग व वीर्यारंभ न करेगा। वह राग, द्वेष, मोह मुक्त रह मलिन चित्त ही मृत्युको प्राप्त करेगा जैसे-कांसेकी थाली रज और मकसे लिप्स ही कसेरेके यहांसे घर लाई जावे उसको लानेवाला मालिक न उसका उपयोग करे न उसे साफ करे तथा कचरेमें डालदे तब वह कांसे की थाली कालांतरमें
और भी अधिक मैली हो जायगी इसीतरह जो अंगण होते हुए उसे ठीकसे नहीं जानता है वह अधिक मलीनचित्त ही रहकर मरेगा।
जो व्यक्ति अंगण सहित होनेपर ठीकसे जानता है कि मेरे भीतर मल है वह उस मलके नाशके लिये वीर्यारम्भ कर सकता है, वह राग, द्वेष, मोह रहित हो, निर्मल चित्त हो मरेगा । जैसे रज व मलसे लिप्त कांसेकी थाली लाई जावे, मालिक उसका उपयोग करे, साफ करे, उसे कचरेमें न डाले तब वह स्तु कालांतरमें अधिक परिशुद्ध होजायगी।
जो व्यक्ति अंगण रहित होता हुमा भी उसे ठीकसे नहीं जानता है वह मनोज्ञ (सुंदर) निमित्तोंके मिलने नकी ओर मनको झुका देगा तब उसके चित्तमें राग चिपट जाय.. .--वह राग, द्वेष मोह सहित, मलीनचित्त हो मरेगा। जैसे बाजारसे कांसेकी थाली शुद्ध लाई जावे परन्तु उसक' मालिक न उसका उपयोग करे, :
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