________________
३.]
दसरा मागे । दुसरी कांसेकी थालीसे ढककर बाजारमें रखदें उसे देखकर लोग कहे कि महो! यह चमकता हुआ क्या रक्खा है। फिर ऊपरकी थालीको उठाकर देखें । उसे देखते ही उनके मनमें घृणा, प्रतिकूलता, जुगुप्सा उत्पन्न होजावे, भूखेको भी खानेकी इच्छा न हो, पेटभरोंकी तो बात ही क्या । इसी तरह बुराइयोंसे भरे भिक्षुका सत्कार उत्तम पुरुष नहीं करते।
परन्तु जिस किसी भिक्षुकी बुराइयां नष्ट होगई हैं उसका सत्कार सब्रह्मचारी करते हैं। जैसे एक निर्मल कांसेकी थाली बाजारसे लाई जावे उसका मालिक उसमें साफ किये हुए शालीके चाबलको अनेक प्रकारके सूप (दाल) और व्यं मन (साग भाजी) के साथ सजाकर दुसरी कांसे की थालीसे ढककर बाजारमें रखदें, उसे देखकर लोक कहे कि चमकता हुआ क्या है ? थाली उठाकर देखें तो देखते ही उनके मनमें प्रसन्नता, अनुकूलता और भजुगुप्सा उत्पन्न होजावे, पेटभरेकी भी खानेकी इच्छा हो जावे, भूखोंकी तो बात ही क्या है। इसी प्रकार जिसकी बुराइयां नष्ट होगई हैं उसका सत्पुरुष सत्कार करते हैं।
नोट-इस सूत्रमें शुद्ध चित्त होकर धर्मसाधनकी महिमा बताई है तथा यह झलकाया है कि नो ज्ञानी है वह अपने दोषोंको मेट सक्ता है। जो अपने भावोंको पहचानता है कि मेरा भाव यह शुद्ध है वह अशुद्ध है वही अशुद्ध मावों के मिटानेका उद्योग करेगा। प्रयत्न करते करते ऐसा समय आयगा कि वह दोषमुक्त व वीतराग होजावे । जैन सिद्धांसमें भी व्रतीके लिये विषयकषाय व शल्य व गारव भादि दोषोंके मेटनेका उपदेश है। उसे पांच इन्द्रियों की
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com