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मैन बौद्ध तत्वान। [३५ (३) होसकता है कोई भिक्षु यह इच्छा करे कि मैं अपराध करूं, मेरे बराबरका व्यक्ति मुझे दोषी ठहरावे दूसरा नहीं । कदाचित् दुसरेने दोष ठहराया. इस बातसे वह कुपित होजावे, यह कोप एक तरहका अंगण है।
(४) होसकता है कोई भिक्षु यह इच्छा करे कि शास्ता (बुद्ध) मुझे ही पूछ पूछकर धर्मोपदेश करें दूसरे भिक्षुको नहीं। कदाचित शास्ता दूसरे भिक्षुको पुछकर धर्मोपदेश करे उसको नहीं, इस बातसे वह मिक्षु कुपित होजावे, यह कोप एक तरहका अंगण है।
(५) होसकता है कि कोई भिक्षु यह इच्छा करे कि मैं ही माराम (आश्रम ) में आये भिक्षुओंको धर्मोपदेश करूं दूसरा भिक्षु नहीं। होसकता है कि अन्य ही भिक्षु धर्मोपदेश करे, ऐसा सोच. कर वह कुपित होजावे । यही को। एक तरह का अंगण है।
(६) होसकता है किसी भिक्षुको यह इच्छा हो कि भिक्षु मेग ही सत्कार करें, मेरी ही पूजा करें, दूसरे की नहीं। होसकता है कि भिक्षु दूसरे भिक्षुकी सत्कार पूजा करे इससे वह कुपित होजावे यह . एक तरहका अंगण है। इत्यादि ऐसी ही बुराइयों और इच्छाकी परतंत्रताओंका नाम अंगण है । जिस किसी कि भिक्षुकी यह बुगइया नष्ट नहीं दिखाई पड़ती हैं. सुनाई देती हैं, चाहे वह बनवासी, एकांत कुटी निवासी, भिक्षान्नभोजी आदि हो उसका सत्कार व मान स. ब्रह्मचारी नहीं करते क्योंकि उसकी बुगइ नष्ट नहीं हुई हैं। जैसे कोई एक निर्मल कांसेकी थाली बाजारसे लावे, फिर उसका मालिक उसमें मुर्दे सांप, मुर्दे कुत्ते या मुर्दै मनुष्य (के मांस ) को भरकर ,
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