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दूसरा भाग ।
वत्थस्स सेदभावो जह णासेदि मढविमेळणाच्कृण्णो । तह दु कसायाच्णं चारितं होदि णादव्वं ॥ १६६ ॥ भावार्थ- जैसे वस्त्रका उजलापन मलके मैलसे ढका हुआ नाश होजाता है वैसे ही मिथ्यादर्शन के मैलसे ढका हुआ जीवका सम्यग्दर्शन गुण है ऐसा जानना चाहिये। जैसे वस्त्रका उजलापन मलके मैलसे ढका हुआ नाशको प्राप्त होजाता है वैसे अज्ञान के मैळसे ढका हुआ जीवका ज्ञान गुण जानना चाहिये । जैसे वस्त्रका उजलापन मलके मैकसे ढका हुआ नाश होजाता है वैसे कषायके मलसे ढका हुआ जीवका चारित्र गुण जानना चाहिये ।
जैसे बौद्ध सूत्रमें चित्तके मळ सोलह गिनाए हैं वैसे जैन सिद्धांत में चित्तको मलीन करनेवाले १६ कषाय व नौ नोकषाम ऐसे २५ गिनाए हैं । देखो तत्वार्थसूत्र उमास्वामी कृत - अध्याय ८ सूत्र ९ ।
४ - अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभ-ऐसे कषाय जो पत्थर की लकी के समान बहुत काल पीछे हटें। यह सम्यग्दर्शनको रोकती है।
४- अप्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ - ऐसी कषाय जो हलकी रेखाके समान हो, कुछ काल पीछे मिटे । यह गृहस्थ के व्रत नहीं होने देती है ।
४ - प्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ- ऐसी कषाय जो वालुके भीतर बनाई लकीरके समान शीघ्र मिटे । यह साधुके चारित्रको रोकती है ।
५- संज्वलन क्रोध, मान, माया, लोभ-ऐसी कषाय जो
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