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न उसे साफ रक्खे-कचरेमें डालदे तो यह थाली कालांतर मैली होजायगी। _जो व्यक्ति अंगण रहित होता हुआ ठीकसे जानता है वह मनोज्ञ निमित्तोंकी तरफ मनको नहीं झुकाएगा तब वह रागसे लिप्त न होगा। वह रागद्वेष मोहरहित होकर, अंगणरहित व निर्मळचित्त हो मरेगा जैसे-शुद्ध कांसे की थाली कसेरेके यहांसे लाई जावे। मालिक उसका उपयोग करें, साफ रक्खें उसे कचरेमें न डाले तब वह थाली कालांतरमें और भी अधिक परिशुद्ध और निर्मल होजायगी।
तब भोग्गलापनने प्रश्न किया कि अंगण क्या वस्तु है ? तब सारिपुत्र कहते हैं-पाप, बुराई व इच्छाकी परतंत्रताका नाम अंगण है, उसके कुछ दृष्टांत नीचे प्रकार हैं
(१) हो सकता है कि किसी भिक्षुके मनमें यह इच्छा उत्पन्न हो कि मैं अपराध करू तथा कोई भिक्षु इस बातको न जाने । कदाचित् कोई मिन उस मिक्षुकके बारेमें जान जावें कि हमने भापत्ति की है तब वह भिक्षु यह सोचे कि भिक्षुभोंने मेरे अपराधको जान लिया । और मनमें कुपित होवे, नाराज होवे, यही एक तरहका अंगण है।
(२) हो सकता है कोई भिक्षु यह इच्छा करे कि मैं अपराध करूं लेकिन भिक्षु मुझे अकेले हीमें दोषी ठहरावें, संघमें नहीं; कदाचित् भिक्षुगण उसे संघके बीचमें दोषी ठहरावें, अकेले में नहीं । तब वह भिक्षु इस बातसे कुपित होजावे यह जो कोप है वही एक तर. हका अंगण है।
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