________________
महावीरकालीन सामाजिक और राजनैतिक स्थिति
(महाभारत, सभापर्व, 4.10-13 [6])। वे महाराज युधिष्ठिर की सभा में बैठते थे तथा महाभारत में ही अन्य प्रसंग में पाराशर व पराशर्य नाम से उल्लेख मिलता है (महाभारत, सभापर्व, 7.10, 7.13 [7])। जबकि निमि (नमि) का उल्लेख अतिबलशाली, महारथी, गुणशाली राजा के रूप में हुआ है (महाभारत, आदिपर्व, 1.171, 174 [8])।
इसके अतिरिक्त भी सूत्रकृतांग में अज्ञानवाद, ज्ञानवाद, अफलवाद, ईश्वरकारणिक, आधाकर्मकृतवाद, कर्मोपचय सिद्धान्त, अवतारवाद, वेदवादी ब्राह्मण, हस्तितापस, सिद्धवाद, पापित्यीय श्रमण आदि का उल्लेख मिलता हैं। इन सभी का क्रियावाद, अक्रियावाद, अज्ञानवाद तथा विनयवाद में समावेश हो जाता है। और भी सृष्टि उत्पत्ति सम्बन्धी विभिन्न मतों-अण्डकृत सृष्टि, देव एवं बह्माकृत सृष्टि, ईश्वरकृत (ईश्वरकारणिक) सृष्टि, प्रधानकृत सृष्टि का उल्लेख मिलता है।
साथ ही जैन आगम तथा उसके व्याख्या ग्रंथ पांच प्रकार के श्रमणों का उल्लेख करते हैं, जैसे-1. निर्ग्रन्थ, 2. तापस, 3. शाक्य, 4. गेरुय (परिव्राजक), 5. आजीविक (निशीथभाष्य गाथा, 4420 [9])। इनके प्रकारान्तर से अनेक भेद मिलते हैं और भी स्वतीर्थिक दर्शन भ्रष्ट सात निहवों-1. बहुतर, 2. जीवप्रादेशिक, 3. अवर्तिक, 4. सामुच्छेदिक, 5. द्विक्रिया, 6. त्रैराशिक, 7. अबद्धिक का उल्लेख मिलता है (स्थानांग, 7.140 [10])।
महावीर के समकालीन बौद्ध साहित्य दीघनिकाय के अन्तर्गत 62 मतवादों का उल्लेख हुआ है, जैसे आदि सम्बन्धी 18 मत-1. शाश्वतवाद, 2. नित्यता-अनित्यतावाद, 3. सान्त-अनन्ततावाद, 4. अमराविक्षेपवाद, 5. अकारकवाद। अन्त सम्बन्धी 44 मत-1. मरणान्तर होश वाला आत्मा, 2. मरणान्तर न होश वाला आत्मा, 3. मरणान्तर बेहोश आत्मा, 4. आत्मा का उच्छेद, 5. इसी जन्म में निर्वाण। वहाँ इन दस वादों के विभिन्न कारणों का उल्लेख कर 62 भेद किये गए हैं (दीघनिकाय, ब्रह्मजालसुत्त, 1.1, पृ. 16-43, बौद्ध भारती, वाराणसी, प्रकाशन [11])।
इस प्रकार 600 ई.पू. के वादों की एक लम्बी श्रृंखला प्राप्त होती है जिनके अनेक भेद प्रभेद भी मिलते हैं। यहां उनका नामोल्लेख मात्र किया गया है। इनका विवेचन स्वतन्त्र रूप से सप्तम अध्याय (महावीरकालीन प्रचलित अन्य मतवाद) के अन्तर्गत किया जायेगा।
लेकिन उससे पूर्व उस समय की सामाजिक व राजनीतिक व्यवस्था का अध्ययन करना भी आवश्यक है जिससे यह जानने में सुगमता होगी कि किस तरह की परिस्थितियों में भिन्न-भिन्न मतवादों का उदय हुआ।