Book Title: Jain Agam Granthome Panchmatvad
Author(s): Vandana Mehta
Publisher: Jain Vishva Bharati
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जैन आगम ग्रन्थों में पञ्चमतवाद
आवश्यकहारिभद्रीयावृत्ति- श्री भेरूलाल कन्हैयालाल कोठारी धार्मिक ट्रस्ट, मुम्बई, भाग 1-2, वि.सं. 2038 (= ई.सन् 1982).
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अंग - सुत्ताणि - संपा. मुनि नथमल, मूलपाठ सहित जैन विश्वभारती, लाडनूँ, राजस्थान, प्रथम संस्करण, भाग-1, आयारो, सूयगडो, ठाणं, समवाओ, वि.सं. = विक्रम सम्वत्-2031 ( = ई. सन् 1974 ) भाग-2, भगवई, 1974, भाग - 3, नायाधम्मकहाओ, उवासगदसाओ, अंतगडदसाओ, अणुत्तरोववाइयदसाओ, पण्णावागरणाई, विवागसुयं, 1974, द्वितीय संस्करण, जैन विश्वभारती संस्थान, लाडनूँ, राजस्थान, भाग, 1-3, 1992. इसिभासियाइं सुत्ताइं – संपा. मनोहरमुनि, सुधर्मा ज्ञानमंदिर, मुम्बई, 1963. उत्तरज्झयणाणि-संपा. युवाचार्य महाप्रज्ञ, मूलपाठ - संस्कृत छाया, हिन्दी अनुवाद, तुलनात्मक टिप्पण तथा परिशिष्टों से युक्त, खण्ड 1-2 [प्रथम संस्करण 1967, जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा प्रकाशन, कलकत्ता ], द्वितीय संस्करण, खण्ड 1-2, 1992-93, जैन विश्वभारती संस्थान, लाडनूँ, राजस्थान. उत्तराध्ययन शान्त्याचार्यटीका - देवचन्द लालभाई जैन पुस्तकोद्धार, सुरत, 1917. उत्तराध्ययन सुखबोधाटीका - पुष्पचन्द्र खेमचन्द्र मण्डल, तिलक मेमोरियल, पूना, 1937. उपासकदशासूत्र—संपा. मधुकर मुनि, मूलपाठ हिन्दी अनुवाद - विवेचन - टिप्पण युक्त, श्री आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर, 1980-81.
उवंग - सुत्ताणि - संपा. मुनि नथमल, मूलपाठ, सहित, जैन विश्वभारती, लाडनूँ, राजस्थान, खण्ड-1, ओवाइयं, रायपसेणियं, जीवाजीवाभिगमे, वि.सं. 2044 (= ई.सन् 1987) खण्ड-2, पण्णवणा, जम्बूद्दीवपण्णत्ति, चंद्रपण्णत्ति, सूरपण्णत्ति, निरयावलियाओ, कप्पबडिंसियाओ, पुप्फियाओ, पुप्फिचुलियाओ, वण्हिदिसाओ, 1989.
कल्पसूत्र - संपा. देवेन्द्र मुनि शास्त्री, श्री अमर जैन आगम शोध संस्थान, सिवाना, राजस्थान, 1968.
ठाणं - संपा. मुनि नथमल, मूल पाठ, संस्कृत छाया, हिन्दी अनुवाद तथा टिप्पण, जैन विश्वभारती, लाडनूँ, राजस्थान, वि.सं. 2033 (= ई.सन् 1976).

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