Book Title: Jain Agam Granthome Panchmatvad
Author(s): Vandana Mehta
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 404
________________ ग्रन्थ पञ्जिका 367 जैन, कैलाशचन्द्र-जैन धर्म का इतिहास, डी.के. प्रिंटवर्ल्ड, प्रा. लि., दिल्ली, भाग-1, महावीर के पूर्व जैन धर्म और उसका काल, 2005. जैन, जगदीशचन्द्र-जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, चौखम्बा पब्लिशर्स, वाराणसी, 1967. जैन, लालचन्द-जैनदर्शन में आत्म-विचार, पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी, 1984. जैन, सागरमल-जैन बौद्ध, गीता के आचार-दर्शनों का अनुशीलन, राजस्थान प्राकृत भारती संस्थान, जयपुर, खण्ड 1-2, 1982. -जैन, बौद्ध और औपनिषदिक ऋषियों के उपदेशों का प्राचीनतम संकलन : ऋषिभाषित, पृ. 83-90. -महावीरकालीन विभिन्न आत्मवाद एवं जैन आत्मवाद का वैशिष्ट्य, पृ. 112-117. -प्राचीन जैन आगमों में चार्वाक दर्शन का प्रस्तुतीकरण एवं समीक्षा, पृ. 217-223. जैन विद्या के विविध आयाम, खण्ड-6 (सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ), पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी, 1998. दयाकृष्ण (संपा.)-पाश्चात्य दर्शन का इतिहास, राजस्थान हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, जयपुर, भाग-1, [प्रथम संस्करण, 1979], द्वितीय संस्करण, 1988. देवराज, नंदकिशोर (संपा.)-भारतीय दर्शन (ऐतिहासिक और समीक्षात्मक विवेचन), उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ, [प्रथम संस्करण, 1975], तृतीय संस्करण, 1983. देवेन्द्रमुनि-जैन दर्शन : स्वरूप और विश्लेषण, श्री तारक गुरु ग्रन्थालय, उदयपुर, [प्रथम संस्करण, 1975], द्वितीय संस्करण, 1996. -जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा, श्री तारक गुरु ग्रन्थालय, उदयपुर, [प्रथम संस्करण, 1977], द्वितीय संस्करण, 2005. दोशी, बेचरदास-जैन साहित्य का वृहद् इतिहास, पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी-5, भाग-1, अंग आगम, [प्रथम संस्करण, 1966], द्वितीय संस्करण, 1989.

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