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महावीरकालीन सामाजिक और राजनैतिक स्थिति
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जैन आगमों में 6ठी ई.पू. के शिक्षा केन्द्र के बारे में जानकारी प्राप्त नहीं होती, लेकिन जैन आगमिक व्याख्या-साहित्य से उस युग के कुछ शिक्षा केन्द्रों की अवश्य जानकारी प्राप्त होती है। उत्तराध्ययन टीका से पता चलता है कि वाराणसी उस समय शिक्षा का मुख्य केन्द्र था, जहाँ विद्यार्थी गुरु/उपाध्याय के घर रहकर भी विद्याध्ययन करते थे। श्रावस्ती पाटलिपुत्र और दक्षिण में प्रतिष्ठान विद्या के बड़े केन्द्र थे।'
बौद्ध ग्रन्थों से इस काल में तक्षशिला शिक्षण केन्द्र का पता चलता है। तक्षशिला इस काल में विद्या का बड़ा केन्द्र था। इसमें अनेक प्रसिद्ध शिक्षक थे, जिनके पास सैकड़ों विद्यार्थी उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए सुदूर स्थानों, जैसे-राजगृह, वैशाली, उज्जयिनी मिथिला से आया करते थे। ऐसा माना जाता है कि भगवान् बुद्ध तक्षशिला शिक्षण केन्द्र में अध्ययनार्थ गए थे।
इस प्रकार 600 ई. पू. में एक ऐसा विद्याभ्यास चलता था जहां शिष्य गुरु के प्रति समर्पित थे वहीं गुरु भी शिष्य को अनेक विद्याओं, कलाओं की शिक्षा प्रदान करता था। यद्यपि आगमों मे ऐसे विद्याकेन्द्रों का उल्लेख नहीं मिलता, जहां अनेक शिष्यों अथवा विद्यार्थियों का अध्ययन-अध्यापन चलता हो जैसा कि व्याख्या साहित्य में उल्लेख मिलता है। उस समय जो शिक्षा पाठ्यक्रम चलता था, वे विषय आज भी किसी न किसी रूप से अवश्य प्रचलित हैं। चाहे वह किसी विश्वविद्यालय में किसी विद्याशाखा के अन्तर्गत हों अथवा अन्य गैर सरकारी/व्यक्तिगत शिक्षा-संस्थानों के अन्तर्गत आते हों। कहने का तात्पर्य यह है कि आज भी प्राच्य विद्या जीवित है। किन्तु यह भी सच है कि इन विषयों का महत्त्व कम हो गया है तथा तकनीकी विषय प्रबन्धन आदि विषयों का महत्त्व बढ़ गया और अर्थ प्रमुख बन गया। यदि समग्र दृष्टि से चिन्तन किया जाए तो प्राचीन शिक्षा व्यवस्था में शिक्षा के संबंध में अधिक
1. Vāranasī was one of the chief centres of learning. prince Agadadatta of
Sankhapura went there to study. He stayed in the house of his teacher and after completing his studies returned home. Sāvatthi is mentioned another centre of education.Pādalliputta was still another seat of learning. Paitthāņa
was a centre of learning in the south, J.C. Jain, Ibid, p. 229. 2. Taxila became a widely known seat of learning during this period-It had many
famous teachers to whom hundreds of students flocked for higher education from distant places like Rājagriha, Vaiśāli, Banārasa, Ujjayinī and Mithilā. These teachers were not members of any organized institution like college or university but every teacher, assisted by his advanced students, formed an institution by himself. One such institution under a world-renowed teacher had five hundred students under his charge. K.C. Jain, Lord Mahāvīra and His Times, pp.347-348.