Book Title: Jain Agam Granthome Panchmatvad
Author(s): Vandana Mehta
Publisher: Jain Vishva Bharati
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टिप्पण ( Notes & References)
329 486. सूत्रकृतांग, I.1.1.17-18 (देखें-मूल नं. 354, 360) 487-I. नंदी, 4.67
...मिच्छसुयं-जं इमं अण्णाणिएहि मिच्छदिट्ठिहिं सच्छंदबुद्धि-मइ-विगप्पियं तं जहा-1.
भारहं,...12. बुद्धवयणं, ... II. अनुयोगद्वार, 2.49, 9.548
लोइयं भावासुयं (मिच्छसुय)-जं इमं अण्णाणिएहिं मिच्छदिट्ठिहिं सच्छंदबुद्धि-मइ
विगप्पियं तं जहा-1. भारह,... 13. बुद्धवयणं, 14. काविलं, । 488. अनुयोगद्वार, 1.26
कुप्पावयणियं भावावस्सयं-जे इमं चरग-चीरिय-चम्मखंडिय-भिक्खोंड... 489-I. अनुयोगद्वारचूर्णि, पृ.12
भिक्खं उडेंति भिक्षाभोजना इत्यर्थः बुद्धसासणत्था वा सिखंडि II. अनुयोगद्वारहारिभद्रीयवृत्ति, पृ.17
भिक्षोण्डाः-भिक्षाभोजिनः सुगतशासनत्था इत्यन्ये 490. औपपातिक, 94
से णे इमा गंगाकूला वाणपत्था तावसा भवंति, तं जहा-होत्तिया पोत्तिया कोत्तिया जण्णई सदुई थालई हुंबउट्ठा दंतुक्खलिया उम्मज्जगा सम्मज्जगा निमज्जगा संपक्खाला दक्खिणकूलगा उत्तरकूलगा संखधमगा कूलधमगा मिगलुद्धगा हत्थितावसा उदंडगा दिसापोक्खिणो वाकवासिणो बिलवासिणो जलवासिणो रुक्खमूलिया अंबुभक्खिणो वाउभक्खिणो सेवालभक्खिणो मूलाहारा कंदाहारा तयाहारा पत्ताहारा पुष्फाहारा फलाहारा बीयाहारा परिसडिय-कंद-मूल-तय-पत्त-पुप्फ-फलाहारा जलाभिसेयकढिणगाया आयावणाहिं पंचग्गितावेहिं इंगालसोल्लियं कंदुसोल्लियं कट्ठसोल्लियं पिव अप्पाणं
करेमाणा बहूई वासाइं परियागं पाउणंति...। 491. सूत्रकृतांग, II.6.52
संवच्छरेणावि.य एगमेगं बाणेण मारेउ महागयं तु।
सेसाण जीवाण दयट्ठयाए वासं वयं वित्तिं पकप्पयामो।। 492. भगवती, 11.9.63-70
तए णं सिवे राया अण्णया कयाइ सोभणंसि तिहि-करण दिवस-मुहुत्त-नक्खत्तंसि विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं उवक्खडावेति, उवक्खडावेत्ता मित्तनाइ-नियम-सयणसंबंधि-परिजणं रायाणो य खत्तिए य आमंतेति, आमतेता तओ पच्छा पहाए कयबलिकम्मे कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाइं वत्थाई पवर परिहिए अप्पमहग्याभरणालंकिय-सरीरे भोयणवेलाए भोयणमंडवंसि सुहासणवरगए तेणं मित्त-नाइ-नियगसयण-संबंधि-परिजणेणं राएहि य खत्तिएहि सद्धिं विपुलं असण-पाण-खाइम साइमं

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