Book Title: Jain Agam Granthome Panchmatvad
Author(s): Vandana Mehta
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 367
________________ 330 जैन आगम ग्रन्थों में पञ्चमतवाद आसादेमाणो वीसादेमाणे परिभाएमाणे परिभुजेमाणे विहरइ। जिमियभुत्तुरागए वि य णं समाणे आयते चोक्खे परमसुइब्भूए तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणं विउलेणं असण-पाण-खाइम साइमेणं वत्थ गंथ-मल्ला-लंकारेण य सक्कारेइ सम्मोणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि परिजणं रायाणे य खत्तिए य सिवभदं च रायाणं आपुच्छइ, आपुच्छित्ता सुबहुं लोही-लोहकडाह-कडच्छुयं तंबियं तावसभंडगं गहाय जे इमे गंगाकूलगा वाणपत्था तावसा भवंति, तं चेव जाव तेसिं अंतियं मुंडे भवित्ता दिसा पोक्खियताव-सत्ताए पव्वइए, पव्वइए वि य णं समाणे अयमेयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हति-कप्पइ मे जावज्जीवाए छटुंछटेणं अणिक्खित्तेणं दिसाचक्कवालेणं तवोकम्मेणं उढे वाहाओ पगिज्झिय-पगिज्झिय सूराभिमुहस्स आयावणभूमीए आयावेमाणस्स विहरित्तए-अयमेयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हित्ता पढमं छट्टक्खमणं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ ।63 ...से सिवे रायरिसी पढम छट्ठक्खमणपारणगंसि आयावणभूमीओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता वागलवत्थनियत्थे जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता किढिण संकाइयगं गिण्हइ, गिण्हित्ता पुरत्थिमं दिसं पोक्खेइ, पुरत्थिमाए दिसाए सोमे महाराया पत्थाणे पत्थियं अभिरक्खउ सिवं रायरिसिं-अभिरक्खउ सिवं राय रिसिं, जाणि य तत्थ कंदाणि य मूलाणि य तयाणि य पत्ताणि य पुष्पाणि य फलाणि य बीयाणि य हरियाणि य ताणि अणुजाणउ त्ति कटु पुरथिमं दिसं पसरइ, पसरित्ता जाणि य तत्थ कंदाणि य जाव हरियाणि य ताइं गेण्हइ, गेण्हित्ता किढिण-संकाइयगं भरेइ, भरेत्ता दब्भे य कुसे य समिहाओ य पत्तामोडं च गिण्हइ, गिण्हित्ता जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता किढिणसंकाइयगं ठवेइ, ठवेत्ता वेदि वड्डेइ, वड्वेत्ता उवलेवणं संमज्जणं करेइ, करेत्ता दब्भकलसाहत्थगए जेणेव गंगा महानदी तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता गंगंमहानदिं ओगाहेइ, ओगाहेत्ता जलमज्जणं करेइ, करेत्ता जलकीडं करेइ, करेत्ता जलाभिसेयं करेइ, करेत्ता आयंते चोक्खे परमसुइभूए देवय-पिति-कयकज्जे दब्भकलसाहत्थगए, गंगाओ महानदीओ पच्चुत्तरइ, पच्चुत्तरित्ता जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता दब्भेहि य कुसेहि य वालुयाएहि य वेदिं रएति, रएत्ता, सरएणं अरणिं महेइ, महेत्ता अग्गिं पाडेइ, पाडेत्ता अग्गिं संधुक्केइ, संधुक्केत्ता समिहाकट्ठाइं पक्खिवइ, पक्खिवित्ता अग्गिं उज्जालेइ, उज्जालेत्ता “अग्गिस्स दाहिणे पासे, सत्तंगाई समादहे" तं जहा- सकहं वक्कलं ठाणं, सिज्जाभंडं कमंडलु। दंडदारुं तहप्पाणं, अहे ताइं समादहे।। महुणा य घएण य तंदुलेहि य अग्गिं हुणइ, हुणित्ता चरुं साहेइ, साहेत्ता बलिवइस्सदेवं करेइ, करेत्ता अतिहिपूयं करेइ, करेत्ता तओ पच्छा अप्पणा आहारमाहारेति ।।64 तए णं से सिवे रायरिसी दोच्चं छट्ठक्खमणं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ।।65 तए णं से सिवे रायरिसी दोच्चे छट्ठक्खमणपारणगंसि आयावणभूमीओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता वागलवत्थनियत्थे जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता

Loading...

Page Navigation
1 ... 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416