Book Title: Jain Agam Granthome Panchmatvad
Author(s): Vandana Mehta
Publisher: Jain Vishva Bharati
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जैन आगम ग्रन्थों में पञ्चमतवाद होज्जा वि णं गोयमा! तस्स अया-वयस्स केई परमाणुपोग्गलमत्ते वि पएसे, जे णं तासिं अयाणं उच्चारेण वा, जाव नहेहिं वा अणोक्कंतपुव्वे, नो चेव णं एयंसि एमहालगंसि लोगंसि लोगस्स य सासयं भावं, संसारस्स य अणादिभावं, जीवस्स य णिच्चभावं, कम्मबहुत्तं, जम्ममरणबाहुल्लं च पडुच्च अस्थि केइ परमाणुपोग्गलमेत्ते वि पएसे, जत्थ णं अयं जीवे न जाए वा, न मए वा वि। से तेणटेणं गोयमा! एवं वुच्चइ-एयंसि णं एमहालगंसि लोगंसि नत्थि केइ परमाणुपोग्गलमेत्ते वि पएसे,
जत्थ णं अयं जीवे न जाए वा, न मए वा वि।।32 566. भगवती, 30.1.4
अलेस्सा णं भंते! जीवा-पच्छा।
गोयमा! किरियावादी, नो अकिरियावादी, नो अण्णाणियवादी, नो वेणइयवादी।। 567. भगवती, 30.1.6
सम्मामिच्छादिट्ठी णं-पुच्छा।
गोयमा! नोकिरियावादी, नो अकिरियावादी, अण्णाणियवादी वि, वेणइयवादी वि। 568. भगवती, 30.1.30-31
किरियावादी णं भंते! जीवा किं भवसिद्धीया? अभवसिद्धीया?
गोयमा! भवसिद्धीया, वि, अभवसिद्धीया वि। एवं अण्णाणियवादी वि, वेणइयवादी वि।। 569. भगवतीवृत्ति, पृ. 944
एते च सर्वेऽप्यन्यत्र यद्यपि मिथ्यादृष्टयोऽभिहितास्तथाऽपीहाद्याः सम्यग्दृष्टयो ग्राह्या,
सम्यगस्तित्ववादिनामेव तेषां समाश्रयणात्। 570. उत्तराध्ययन, 18.33
किरियं च रोयए धीरे, अकिरियं परिवज्जए। दिट्ठिए दिद्विसंपन्ने, धम्मं चर सुदुच्चरं।। 571. आवश्यक, पृ. 290
अकिरियं परियाणामि किरियं उवसंपज्जामि। 572. सूत्रकृतांगनियुक्ति, गाथा-121
सम्मदिट्ठी किरियावादी। 573. सूत्रकृतांगचूर्णि, पृ. 253
तिणि तिसट्ठा पावदियसयाणि णिग्गंथे मोत्तूण मिच्छादिट्ठिणो ति...। 574. तत्त्वार्थवार्तिक, 8.1
त ऐ मिथ्योपदेशभेदाः त्रीणि शतानि त्रिषष्ट्युत्तराणि। 575. गोम्मटसार-कर्मकाण्ड, गाथा, 889
सच्छंददिट्टिहि वियप्पियाणि तेसट्ठिजुत्ताणि सयाणि तिण्णि। पाखंडियं वाउलकारणाणि अण्णाणि चित्ताणि हरंति ताणि।।
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