Book Title: Jain Agam Granthome Panchmatvad
Author(s): Vandana Mehta
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 381
________________ 344 जैन आगम ग्रन्थों में पञ्चमतवाद होज्जा वि णं गोयमा! तस्स अया-वयस्स केई परमाणुपोग्गलमत्ते वि पएसे, जे णं तासिं अयाणं उच्चारेण वा, जाव नहेहिं वा अणोक्कंतपुव्वे, नो चेव णं एयंसि एमहालगंसि लोगंसि लोगस्स य सासयं भावं, संसारस्स य अणादिभावं, जीवस्स य णिच्चभावं, कम्मबहुत्तं, जम्ममरणबाहुल्लं च पडुच्च अस्थि केइ परमाणुपोग्गलमेत्ते वि पएसे, जत्थ णं अयं जीवे न जाए वा, न मए वा वि। से तेणटेणं गोयमा! एवं वुच्चइ-एयंसि णं एमहालगंसि लोगंसि नत्थि केइ परमाणुपोग्गलमेत्ते वि पएसे, जत्थ णं अयं जीवे न जाए वा, न मए वा वि।।32 566. भगवती, 30.1.4 अलेस्सा णं भंते! जीवा-पच्छा। गोयमा! किरियावादी, नो अकिरियावादी, नो अण्णाणियवादी, नो वेणइयवादी।। 567. भगवती, 30.1.6 सम्मामिच्छादिट्ठी णं-पुच्छा। गोयमा! नोकिरियावादी, नो अकिरियावादी, अण्णाणियवादी वि, वेणइयवादी वि। 568. भगवती, 30.1.30-31 किरियावादी णं भंते! जीवा किं भवसिद्धीया? अभवसिद्धीया? गोयमा! भवसिद्धीया, वि, अभवसिद्धीया वि। एवं अण्णाणियवादी वि, वेणइयवादी वि।। 569. भगवतीवृत्ति, पृ. 944 एते च सर्वेऽप्यन्यत्र यद्यपि मिथ्यादृष्टयोऽभिहितास्तथाऽपीहाद्याः सम्यग्दृष्टयो ग्राह्या, सम्यगस्तित्ववादिनामेव तेषां समाश्रयणात्। 570. उत्तराध्ययन, 18.33 किरियं च रोयए धीरे, अकिरियं परिवज्जए। दिट्ठिए दिद्विसंपन्ने, धम्मं चर सुदुच्चरं।। 571. आवश्यक, पृ. 290 अकिरियं परियाणामि किरियं उवसंपज्जामि। 572. सूत्रकृतांगनियुक्ति, गाथा-121 सम्मदिट्ठी किरियावादी। 573. सूत्रकृतांगचूर्णि, पृ. 253 तिणि तिसट्ठा पावदियसयाणि णिग्गंथे मोत्तूण मिच्छादिट्ठिणो ति...। 574. तत्त्वार्थवार्तिक, 8.1 त ऐ मिथ्योपदेशभेदाः त्रीणि शतानि त्रिषष्ट्युत्तराणि। 575. गोम्मटसार-कर्मकाण्ड, गाथा, 889 सच्छंददिट्टिहि वियप्पियाणि तेसट्ठिजुत्ताणि सयाणि तिण्णि। पाखंडियं वाउलकारणाणि अण्णाणि चित्ताणि हरंति ताणि।। .. . .

Loading...

Page Navigation
1 ... 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416