Book Title: Jain Agam Granthome Panchmatvad
Author(s): Vandana Mehta
Publisher: Jain Vishva Bharati
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टिप्पण (Notes & References)
347 597. सूत्रकृतांग, I.1.3.68
सएहिं परियाएहिं, लोगं बूया कडे त्ति य। तत्तं ते ण वियाणंति, णायं णाऽऽसी
कयाइ वि?।। 598. भगवती, 7.2.59
दव्वट्ठयाए सासया, भावट्ठयाए असासया। 599. सूत्रकृतांग, I.1.2.52-55
जाणं काएणऽणाउट्टी अबुहो जं च हिंसइ। पुट्ठो वेदेइ परं अवियत्तं खु सावज्ज।।52 संतिमे तओ आयाणा जेहिं कीरइ पावगं। अभिकम्मा य पेसा य मणसा अणुजाणिया। 153 एए उ तओ आयाणा जेहिं कीरइ पावगं । एवं भावविसोहीए णिव्वाणमभिगच्छइ ।।54
पुत्तं पिता समारंभ आहारटुं असंजए। भुंजमाणो वि मेहावी कम्मुणा णोवलिप्पते।5।। 600. सूत्रकृतांग, I.1.2.51
अहावरं पुरक्खायं किरियावाइदरिसणं । कम्मचिंतापणट्ठाणं दुक्खखंधविवद्धणं ।।51 601. मज्झिमनिकाय, उपालिसुत्त, II.6.1
तीणि खो अहं, तपस्सि, कम्मानि पञपेमि पापस्स कम्मस्स किरियाय पापस्स
कम्मस्स पवत्तिया, सेय्यथीदं-कायकम्मं, वचीकम्म, मनोकम्मं ति। 602. खुद्दकनिकाय, बालोवादजातक, पृ. 64
पुत्त-दारपि चे हन्त्वा, देति दानं असञतो। भुञमानो पि संप्पो , न पापमुपलिम्पती।। 603. सूत्रकृतांग, II.6.26-28
पिण्णागपिंडीमवि विद्धसूले केई पएज्जा पुरिसे इमे त्ति। अलाउयं वा वि कुमारग त्ति स लिप्पई पाणिवहेण अम्हं।।26 अहवावि विभ्रूण मिलक्खु सूले पिण्णागबुद्धीए णरं पएज्जा। कुमारगं वा वि अलाउए त्ति ण लिप्पई पाणिवहेण अम्हं।।27 पुरिसं च विभ्रूण कुमारगं वा सूलंमि केइ पए जाएतेए।
पिण्णागपिंडिं सइमारुहेत्ता बुद्धाण तं कप्पइ पारणाए।।28 604. धम्मपद, 1.1
मनो पुव्वंगमा धम्मा मनो सेट्ठा मनोमया। मनसा चे षदुढेन भासति वा करोति वा।। 605. दशवैकालिक, 4.8
जयं चरे जयं चिट्टे जयमासे जयं सए। जयं भुंजतो भासंतो पावकम्मं न बंधइ।। 606. सूत्रकृतांग, I.1.2.56
मणसा जे पउस्संति चित्तं तेसिंण विज्जइ । अणवज्ज अतहं तेसिंण ते संवुडचारिणो।।

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