Book Title: Jain Agam Granthome Panchmatvad
Author(s): Vandana Mehta
Publisher: Jain Vishva Bharati
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टिप्पण (Notes & References)
331 किढिण संकाइयगं गिण्हइ, गिण्हित्ता दाहिणगं दिसं पोक्खेइ, दाहिणाए दिसाए जमे महाराया पत्थाणे पत्थियं अभिरक्खउ सिवं रायरिसिं, सेसं तं चेव जाव तओ पच्छा अप्पणा आहारमाहारेइ।।66 तए णं से सिवे रायरिसि तच्चं छट्टक्खमणं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ।।67 तए णं से सिवे रायरिसी तच्चे छट्टक्खमणपारणगंसि आयावणभूमीओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता वागलवत्थनियत्थे जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता किढिण-संकाइयगं गिण्हइ, गिण्हित्ता पच्चत्थिमं दिसं पोक्खेइ, पच्चत्थिमाए दिसाए वरूणे महाराया पत्थाणे पत्थियं अभिरक्खउ सिवं रायरिसिं, सेसं तं चेव जाव तओ पच्छा अप्पणा आहारमाहारेइ ।68 तए णं से सिवे रायरिसी चउत्थं छट्ठक्खमणं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ।।69 तए णं से सिवे रायरिसी चउत्थे छट्ठक्खमणं पारणगंसि आयावणभूमिओ पच्चोरूहइ, पच्चोरूहित्ता वागलवत्थनियत्थे जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता किढिण-संकाइयगं गिण्हइ, गिण्हित्ता उत्तरदिसं पोक्खेइ, उत्तराए दिसाए वेसमणे महाराया पत्थाणे पत्थियं अभिरक्खउ सिवं रायरिसिं, सेसं तं चेव जाव तओ पच्छा
अप्पणा आहारमाहारेइ।।70 493. औपपातिक, 95
से जे गामागर-णयर-णिगम-रायहाणि-खेड-कब्बड-दोणमुह-मंडब-पट्टणासमसंबाह-सण्णिवेसेसु पव्वइया समणा भवंति, तं जहा-कंदप्पिया कुक्कुइया मोहरिया
गीयरइप्पिया नच्चणसीला। 494. उत्तराध्ययन, 5.21
चीराजिणं नगिणिणं, जडी संघाडि मुंडिणं। एयाणि वि न तायंति, दुस्सीलं परियागयं।। 495-I. अनुयोगद्वार, 1.20
जे इमे चरग चीरिय चम्मखंडिय-भिक्खोंड-पडुरंग गोयम-गोव्वइय-गिहिधम्म-धम्म
चिंतग-अविरुद्ध-विरुद्ध-वुड्डसाव-गप्पभिइओ पासंडत्था... II. अनुयोगद्वार अवचूर्णि, पृ. 12
भिक्खं हिडंति ते चरगा। चीरपरिहाणा चीरपाउरणा चीरभंडो वकरणा य चीरिया। चम्मपरिहाणा चम्मपाउरणा चम्मभंडोवकरणा य चम्महिंडता चम्मखंडिता वा। पाडुरांगा-भस्मोद्धूलितगात्राः। पायवडणादिविविहसिक्खाइ बइल्लं सिक्खावंतो तं चेव पुरो कातुं कण्णभिक्खादि अडंतो गोतमा। गावीहिं समं गच्छंति...गोण इव भक्खयंतो गोव्वतिया। गृहधर्म एव श्रेयान् अतो गृहधर्मे स्थिता गृहधम्मत्था।

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