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महावीरकालीन सामाजिक और राजनैतिक स्थिति
भगवान् महावीर के ग्यारह गणधर थे - 1. इन्द्रभूति, 2. अग्निभूति, 3. वायुभूति, 4. व्यक्त, 5. सुधर्मा, 6. मंडित, 7. मौर्यपुत्र, 8. अकंपित, 9. अचलभ्राता, 10. मेतार्य, 11. प्रभास, यह समवायांग एवं नंदी से ज्ञात होता है ( I. समवायांग, 11.4, II. नंदी, 1.20-21 [ 180 ] ) । वे पहले भगवान् के उत्कट (प्रमुख) शिष्य थे तथा बाद में वे गणधर नाम से पहचाने जाने लगे । आगमों में गणधरों के महावीर के साथ प्रश्नोत्तर तथा उनके आयु सम्बन्धी उल्लेख भी मिलते हैं (समवायांग, 74.1, 78.2, 83.3, 92.2 [181])।
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कल्पसूत्र में भगवान् महावीर का जीवन चरित्र वर्णित है । उसमें गणधरों के बारे में कोई उल्लेख नहीं है, किन्तु उसके टीका ग्रन्थों में गणधरों के बारे में विस्तार से जानकारी मिलती है। जैन सूत्रों से पता चलता है कि महावीर और इन्द्रभूति गौतम का अत्यन्त मधुर सम्बन्ध था तथा वह जन्म-जन्मान्तर का सम्बन्ध था । भगवती के एक संवाद में भगवान् गौतम से कहते हैं - हे गौतम! तू मेरे साथ बहुत समय से स्नेह से बद्ध है । हम दोनों का परिचय दीर्घकालीन है। तूने दीर्घकाल से मेरी सेवा की है, मेरा अनुसरण किया है । अनन्तर देवभव में और अभी के मनुष्य भव में इस प्रकार तुम्हारे साथ सम्बन्ध है । अधिक क्या ? मृत्यु के बाद शरीर का नाश हो जाने पर, यहां से चलकर हम दोनों समान, एकार्थ (एक सिद्ध क्षेत्र में रहने वाले), विशेषता तथा भेद रहित हो जायेंगे ( भगवती, 14.7.77 [182])।
गणधर प्रश्नकर्ता अर्थात् जिज्ञासु स्वभाव के थे । वे अत्यन्त सूक्ष्मता से भगवान् से प्रश्न पूछते। उनके प्रश्नों में जिज्ञासा के अतिरिक्त संतुष्टि बिना किसी बात को स्वीकार न करने की विशेषता भी दृष्टिगोचर होती है । जैसे - उदाहरण रूप में आनन्द श्रावक के अवधिज्ञान के प्रसंग को ले सकते हैं ( उपासकदशा, 1.76 [183]) ।
आगमों में गौतम और महावीर के संवादों का ही उल्लेख नहीं हैं अपितु गणधरों के अन्य स्थविरों के साथ हुए संवाद भी मिलते हैं, जैसे- उत्तराध्ययन का केशी - गौतम संवाद (उत्तराध्ययन 23वां अध्याय) ।
गणधरों के संशयों का सर्वप्रथम आवश्यकनियुक्ति में उल्लेख मिलता है (आवश्यकनिर्युक्ति, 596 [184] —
1. जीव है या नहीं ?
2. कर्म है या नहीं ?
3. शरीर ही जीव है या अन्य ?