Book Title: Jain Agam Granthome Panchmatvad
Author(s): Vandana Mehta
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 352
________________ 315 टिप्पण (Notes & References) सप्तागाराण्यसंकल्पितानि चरेभिक्षाम् ।।। विधूमे सन्नमुसले।।8 एक शाटीपरिहितः ।। अजिनेन वा गोब्रलूनैस्तुणेरवस्तृतशरीरः ।।10 स्थण्डिलशायी।11 अनित्यां वसतिं वसेत् ।।12 सूत्रकृतांग, I.1.1.14 जे ते उ वाइणो एवं लोए तेसिं कुओ सिया? तमाओ ते तमंजंति मंदा आरंभणिस्सिया।। 404. सूत्रकृतांगनियुक्ति, गाथा-34 को वेएइ? अकयं, कयनासो, पंचहा गई नत्थि। देवमणुस्सगयागइ जाइ सरणाइ याणइं च।। 405. सांख्यकारिका, 62 तस्मान्न बध्यते नापि मुच्यते, नाऽपि संसरति कश्चित्। संसरति बध्यते मुच्यते च नानाश्रया प्रकृतिः।। 406. सूत्रकृतांगवृत्ति, पृ. 31 ...सांख्यानां काषायचीवरधारणशिरस्तुण्डमुण्डनदण्डधारणभिक्षाभोजित्व-पंचरात्रोपदेशानुसारयमनियमाद्यनुष्ठानं तथा-पंचविंशतितत्त्वज्ञो, यत्र तत्राश्रये रतः। जटी मुण्डी शिखी वापी मुच्यते नात्र संशयः । इत्यादि सर्वमपार्थकमाप्नोति 407. सूत्रकृतांग, II.1.28-29 से किणं किणावेमाणे, हणं घायमाणे, पयं पयावेमाणे, अवि अंतसो पुरिसमवि विक्किणित्ता घायइत्ता, एत्थं पि जाणाहि णत्थित्थ दोसो।28 ते णो एवं विप्पडिवेदेति, तं जहा-किरिया इ वा अकिरिया इ वा सुकडे इ वा दुक्कडे इ वा कल्लाणे इ वा पावए इ वा साहू इ वा असाहू इ वा सिद्धी इ वा असिद्धी इ वा णिरए इ वा अणिरए इ वा। एवं ते विरुवरुवेहिं कम्मसमारंभेहिं विरूवरूवाइं कामभोगाई समारंभंति भोयणाए।29 408. सूत्रकृतांगवृत्ति, पृ. 37-38 नासतो जायते भावो, नाभावो जायते सतः ... सर्वपदार्थनित्यत्वाऽभ्युपगमे कर्तृत्वपरिणामो न स्यात, ततश्चात्मनोऽकर्तृत्वे कर्मबंधाभावस्तदभावाच्च को वेदयति न कश्चित्सुख दुःखादिकमनुभवतीत्यर्थः एवं चरति कृतनाशः ... । 409. सूत्रकृतांगवृत्ति, पृ. 38 तस्मात्सर्वपदार्थानां कथञ्चिन्नित्यत्वं कथञ्चिदनित्यत्वं सदसत्कार्यवादश्चेत्यवधार्य, तथा चाभिहितम्।

Loading...

Page Navigation
1 ... 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416