Book Title: Jain Agam Granthome Panchmatvad
Author(s): Vandana Mehta
Publisher: Jain Vishva Bharati
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जैन आगम ग्रन्थों में पञ्चमतवाद षष्ठ अध्याय के मूल संदर्भ 410-I. मज्झिमनिकाय, मज्झिमपण्णासक, 3.26.15
....नन्दं वच्छं, किसं संकिच्चं, मक्खलिं गोसालं ति। II. भगवती, 15.101
इमे सत्त पउट्टपरिहारे परिहरामि, तं जहा-1. एणेज्जस्स 2. मल्लरामस्स 3. मंडियस्स
4. रोहस्स 5. भारदाइस्स 6. अज्जुणगस्स गोयमपुत्तस्स 7. गोसालस्स मक्खलिपुत्तस्स। 411. पाणिनी व्याकरण, 6.1.154
मस्करमस्करिणौ वेणुपरिव्राजकयोः। 412. गोम्मटसार, कर्मकाण्ड, 882
जत्तु जदा जेण जहा जस्स य णियमेण होदि तत्तु तदा। तेण तहा तस्स हवेइदि वादो
णियदिवादो दु।। 413. सन्मतितर्क प्रकरण, 3.53
कालो सहाव णियई, पुव्वक्यं पुरिस कारणेगता।
मिच्छत्तं ते चेव उ समासओ होति सम्मत्तं ।। 414. तत्त्वार्थसूत्र, 5.42
अनादिरादिमांश्च 415. कार्तिकेयानुप्रेक्षा, गाथा 244
सव्वाण पज्जयाणं अविज्जमाणाण होदि उप्पत्ती।
कालाई-लद्धिए अणाइ-णिहणम्मि दव्वम्मि।। 416. कार्तिकेयानुप्रेक्षा, गाथा 219
कालाइलद्धिजुत्ता णाणासत्तीहि संजुदा अत्था।
परिणममाया हि सयं ण सक्कदे को वि वारेहूँ।। 417. सूत्रकृतांग, I.1.2.28
आघायं पुण एगेसिं उववण्णा पुढो जिया। वेदयंति सुहं दुक्खं अदुवा लुप्पंति
ठाणओ।। 418. सूत्रकृतांग, I.1.2.29-30
ण तं सयं कडं दुक्खं ण य अण्णकडं च णं। सुहं वा जइ वा दुक्खं सेहियं वा असेहियं ।।29
ण सयं कडं ण अण्णेहिं वेदयंति पुढो जिया। संगइयं तं तहा तेसिं इहमेगेसिमाहियं ।।30 419. सूत्रकृतांग, II.1.39, 41
अहावरे चउत्थे पुरिसजाते णियतिवाइए त्ति आहिज्जइ... 139

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