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षष्ठ अध्याय
नियतिवाद 1. नियतिवाद का स्वरूप (ऐतिहासिक दृष्टि से)
भारतवर्ष में वर्तमान में ही विभिन्न धार्मिक सम्प्रदाय दृष्टिगोचर नहीं होते बल्कि अत्यन्त प्राचीनकाल में भी ऐसे सम्प्रदायों के जाल इस देश में बिछे हुए थे। सामान्यतः लोगों की यह धारणा है कि ब्रह्मसूत्र के रचयिता शंकराचार्य (8वीं ई. शताब्दी) के समय से ही इस साम्प्रदायिकता की नींव भारत में पड़ी तथा रामानुजाचार्य (13वीं-14वीं ई. शताब्दी) के समय यह कुछ दृढ़ हुई। किन्तु इस बात में इतनी सच्चाई नहीं जान पड़ती।
साधुओं का एक सम्प्रदाय, जिसका आविर्भाव भारत में जैन और बौद्ध धर्म के काल में हुआ। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इसकी स्थापना गोशाल मस्करीपुत्र (पालि में गोसाल मक्खलीपुत्त और प्राकृत भाषा में गोसाल मंखलीपुत्त) ने की थी, जो महावीर के समकालीन और आरम्भिक मित्र थे। भारतीय इतिहास में इनकी पहचान आजीवक सम्प्रदाय के नेता के रूप में है। बौद्धों के अनुसार मंखलि गोशाल से पूर्व नन्द वच्छ, किस संकिच्च आदि आजीवक साधु हुए तथा जैनों के अनुसार मंखलि गोशाल आजीवक सम्प्रदाय के सातवें आचार्य हुए। वे आजीवक सम्प्रदाय के प्रर्वतक नहीं थे। आजीवक सम्प्रदाय के प्रर्वतक कुण्डियायन थे। उनके पश्चात् ऐणेयक, मल्लराम, मंडित, रोह, भारद्वाज, गौतमपुत्र अर्जुनये छह आचार्य हुए (I.मज्झिमनिकाय, मज्झिमपण्णासक, 3.26.15, II. भगवती, 15.101 [410])। इस सम्बन्ध में विद्वानों की अलग-अलग धारणाएँ हैं। इनका जन्म निम्न जाति में हआ था और अपने पिता 'मंख' जाति से मंखलि अर्थात तस्वीर (चित्र) दिखाकर अथवा तस्वीरों का लेन-देन करके आजीवका चलाने वाले, के नाम से मंखलिपुत्त नाम पड़ा। गोशालक प्रारम्भ में अपने पुश्तैनी व्यवसाय में रत था। सर्वप्रथम राजगृह नगर में महावीर से मिलन हुआ और उनकी ऋद्धि सिद्धि से प्रभावित हो उनका शिष्यत्व स्वीकार किया। तदनन्तर छः वर्ष तक वे
1. For more detail about Makkhali Gośāla and his Predecessors, See A.L. Basham,
History and Doctrines of the Ājīvikas, London (1st edn., 1951), Reprinted hy Motilal Banarasidass Publishers Pvt. Ltd., Delhi, 1999, pp. 27-34.