Book Title: Jain Agam Granthome Panchmatvad
Author(s): Vandana Mehta
Publisher: Jain Vishva Bharati
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310. उत्तराध्ययन, 13.23 कत्तारमेव अणुजाइ कम्मं .... ।
311. उत्तराध्ययन, 23.73
सरीरमाहु नाव त्ति जीवो वुच्चइ नाविओ ।
312-1. स्थानांग, 8.114
.... चउत्थे समए लोगं पूरेति ।
II दशवैकालिक नियुक्ति, 135, अवचूर्णि, पृ. 71
जीवस्स उ परिमाणं वित्थरओ जाव लोगमेत्तं तु । ओगाहणा य सुहुमा तस्स पदेसा असंखेज्जा ।।
जैन आगम ग्रन्थों में पञ्चमतवाद
जदा केवली समुद्घायतो भवति तदा लोगं पूरेति जीवपदेसेहिं, एक्केक्को जीवपदेसो पिहीभवति, एवं ओगाहणे सुहुमं । असमुग्धायगतस्स जीवपदेसा उपरि उपरि भवंति। ते य पदेसा असंखेज्जा, जावतिया लोगागासपदेसा तावतिया जीवपदेसा वि एकजीवस्स परिमाणं भणितं ।
313. स्थानांग, 4.495
चत्तारि पसग्गेणं तुला पण्णत्ता, तं जहा - धम्मत्थिकाए, अधम्मत्थिकाए, लोगागासे, एगजीवे ।
314. भगवती, 2.10.144
जीवथिका लोए, लोयमेत्ते, लोयप्पमाणे... ।
315. पंचास्तिकाय, 27
जीवोत्ति हवदि चेदा उवओगविसेसिदो पहू कत्ता । भोत्ता य देहमत्तो ण हि मुत्तो संत ।।
16. भावपाहुड, 148
कत्तामोह अमुत्तो शरीरमित्तो अणाइणिहणो य। दंसणणाणुवयोगो णिद्दिट्ठो जिणवरिदेहिं ।। 317. द्रव्यसंग्रह, 2
जीवो उवओगमओ अमुत्तिकत्ता सदेहपरिमाणो । भोत्ता संसारत्थो सिद्धो सो विस्ससोडूढगई ।। 318- 1. दीघनिकाय, II. 151 - 155, खण्ड-1, पृ. 52-53
राजानं मागधं अजातसत्तुं वेदेहिपुत्तं एतदवोच - 'अयं, देव पूरणो कस्सपो .... पकुधोकच्चायनो... सञ्जयो वेलट्ठपुत्तो संघी चेव गणी च गणाचरियो च, जातो, यसस्सी, तित्थकरो, साधुसम्मतो बहुजनस्स, रत्तञ्ञू चिरपब्बजितो, अद्धगतो,
अनुत्त
II. दीघनिकाय, महापरिनिब्बाणसुत्त, खण्ड-2, पृ. 113
... समणा ब्राह्मणा संघिनो गणिनो गणाचरिया जाता यसस्सि नो तित्थकरा

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