Book Title: Jain Agam Granthome Panchmatvad
Author(s): Vandana Mehta
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 347
________________ 310 जैन आगम ग्रन्थों में पञ्चमतवाद अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं उड्डे बाहाओ पगिज्झिय पगिज्झिय सूराभिमूहे आयावणभूमीए आयावेमाणे विहरइ।।186 तए णं से पोग्गले परिव्वायए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्म सोच्चा निसम्म जहा खंदओ जाव ...सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेइ, करेत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो-आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ...।।197 394. ज्ञाताधर्मकथावृत्ति, पत्र-116-117 तत्र पञ्च यमाः-प्राणातिपातविरमणादयः, नियमास्तु शौच-सन्तोष-तपः स्वाध्यायेश्वरप्रणि-धानानि शौचमूलकं यमनियममीलनाद् दशप्रकारम्। 395. ज्ञाताधर्मकथा, I.5.52, 55 तेणं कालेणं तेणं समएणं सुए नामं परिवायए होत्था-रिउव्वेय-जजुब्वेय- सामवेय-अथव्वणवेय सट्ठितंतकुसले संखसमए लद्धढे पंचजम-पंचनियमजुतं सोयमूलयं दसप्पयारंपरिव्वायगधम्मंदाण-धम्मं च सोयधम्मं च तित्थाभिसेयं च आघवेमाणे पण्णवेमाणे धाउरत्त-वत्थपवर-परिहिए-तिदंड-कुडिय-छत्त-छन्नालय-अंकुस पक्त्तिय-केसरि-हत्थगए परिवायगसहस्सेणं सद्धिं संपरिबुडे जेणेव सोगंधिया नयरी जेणेव परिव्वायगावसहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता, परिवायगावसहसि भंडगनिक्खेव करेइ, करेता संखसमएण अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।।52 तए णं से सुए परिवायए तीसे परिसाए सुदंसणस्स य अण्णेसिंच बहूणं संखाणं परिकहेइ एवं खलु सुदंसणा। अम्हं सोयमूलए धम्मे पण्णत्ते। से वि य सोए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-दव्वसोए य भावसोए य। दव्वसोए उदएणं मट्टियाए य। भावसोए दब्बेहि य मतहि य। जंणं अम्हं देवाणुप्पिया! किंचि असुई भवइ तं सव्वं सज्जपुढवीए आलिप्पइ, तओ पच्छा सुद्धेण वारिणा पक्खालिज्जइ, तओतं असुई सुई भवइ। एवं खलु जीवा जलाभिसेय-पूयप्पाणो अविग्घेणं सग्गं गच्छति।।55 396. ज्ञाताधर्मकथा, I.8.139-140 तत्थ णं मिहिलाए चोक्खा नामं परिवाइया-रिउव्वेय-यज्जुव्वेद-सामवेद-अहव्वणवेदइतिहासपंचमाणं निघंटुछट्ठाणं संगोवंगाणं सरहस्साणं चउण्हं वेदाणं सारगा जाव बंभण्णएसु य, सत्येसु सुपरिणिट्ठिया यावि होत्था।।139 तए णं सा चोक्खा परिव्वाइया मिहिलाए बहूणं राईसर जाव सत्यवाहपभिईणं पुरओ दाणधम्मं च सोयधम्मं च तित्थाभिसेयं च आघवेमाणी पण्णवेमाणी परूवेमाणी उवदंसेमाणी विहरइ ।।140 397. औपपातिक, 96 जे से इमे गामागर-णयर-णिगम-रायहाणि...परिव्वाया भवंति, तं जहा-संखा जोगी काविला भिउव्वा हंसा परमहंसा बहुउदगा कुलिव्वया कण्हपरिव्वाया। तत्थ खलु इमे अट्ट माहणपरिवाया भवंति, तं जहाकंडू य करकंटे य, अंबडे य परासरे। कण्हे दीवायाणे चेव, देवगुत्ते य नारए।।

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