Book Title: Jain Agam Granthome Panchmatvad
Author(s): Vandana Mehta
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 344
________________ 307 टिप्पण (Notes & References) पंचम अध्याय के मूल संदर्भ 368. सूत्रकृतांग, I.1.1.13 कुव्वं च कारयं चेव सव् कुव्वं ण विज्जइ। एवं अकारओ अप्पा ते उ एवं पगब्भिया।। 369. सूत्रकृतांगचूर्णि, पृ.27 एगे णाम सांख्यादयः। 370. सूत्रकृतांगवृत्ति, पृ.14 अकर्ता निर्गुणो भोक्ता, आत्मा सांख्य निदर्शने इति। 371-I. सांख्यकारिका, 20 तस्मात्तत्संयोगादचेतनं चेतनावदिव लिंगम्।गुणकर्तृत्वेऽपि तथा कर्ते व भवत्युदासीनः।। II. षड्दर्शनसमुच्चय, 41 ___ अमूर्तश्चेतनो भोगी नित्यः सर्वगतोऽक्रियः । अकर्ता निर्गुणः सूक्ष्म आत्मा कपिलदर्शने।। 372. सूत्रकृतांगचूर्णि, पृ.27 सव्वं कुव्वं ण विज्जति त्ति सर्व सर्वथा सर्वत्र सर्वकालं चेति। 373. सूत्रकृतांगवृत्ति, पृ.14 ...आत्मनश्चामूर्तत्वान्नित्यत्वात् सर्वव्यापित्वाच्च कर्तत्वायानुपपत्तिः, अतएव हेतोः कारयितृत्वमप्यात्मनो-ऽनुपपन्नमिति। 374. दीघनिकाय, सीलक्खन्धवग्गपालि, 1.2.166, पृ. 46, 47 पूरणकस्सपो मं एतदवोच-“करोतो खो, महाराज, कारयतो, छिन्दतो छेदापयतो पचतो पाचापयतो सोचयतो सोचापयतो किलमतो किलमापयतो फन्दतो फन्दापयतो पाणमतिपातापयतो अदिन्नं आदियतो संधिं छिन्दतो निल्लोपं हरतो एकागारिकं करोतो परिपंथे तिट्ठतो परदारं गच्छतो मुसा भणतो करोतो न करीयति पापं । खुरपरियन्तेन चे पि चक्केन यो इमिस्सा पठविया पाणे एकं मंसखलं एक मंसपुजं करेय्य नत्थि ततोनिदानं पापं नत्थि पापस्स आगमो। दक्खिणं चे पि गङ्गाय तीरं गच्छेय्य हनन्तो घातेन्तो छिन्दन्तो छेदापेन्तो पचन्तो पाचापेन्तो, नत्थि ततोनिदानं पापं नत्यि पापस्स आगमो। उत्तरं चे पि गंगाय तीरं गच्छेय्य ददन्तो दापेन्तो यजन्तो यजापेन्तो, नत्थि ततोनिदानं पुलं, नत्थि पुञस्स आगमो। दानेन दमेन संयमेन सच्चवज्जेन नत्थि पुञ्ज, नत्थि पुञस्स आगमो" ति। 375. सुमंगलविलासिनी, दीघनिकाय टीका, 2.166 सब्बथापि पापपुञानं किरियमेव पटिक्खिपति।

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