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महावीरकालीन अन्य मतवाद
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7. स्याद् अस्ति च नास्ति च-क्या यह वक्तव्य है? नहीं, स्याद् अस्ति च ___ नास्ति च अवक्तव्य है।
दोनों को मिलाने से मालूम होगा कि जैनों ने संजय के पहले वाले तीन वाक्यों (प्रश्न और उत्तर दोनों) को अलग करके अपने स्याद्वाद की छह भंगियां बनाई हैं और उसके चौथे वाक्य ‘न है और न नहीं है'-को छोड़कर ‘स्याद्' अवक्तव्य भी है-यह सातवां भंग तैयार कर अपनी सप्तभंगी पूरी की।
उपलब्ध सामग्री से मालूम होता है कि संजय अपने अनेकान्तवाद का प्रयोग परलोक, देवता, कर्मफल, मुक्त-पुरुष जैसे परोक्ष विषयों पर करता था। जैन संजय की युक्ति को प्रत्यक्ष वस्तुओं पर भी लागू करते हैं। उदाहरणार्थ-सामने मौजूद घट की सत्ता के बारे में यदि जैन दर्शन से प्रश्न पूछा जाए तो उत्तर निम्न प्रकार मिलेगा
1. घट यहाँ है?-हो सकता है (स्याद् अस्ति)। 2. घट यहाँ नहीं है?-नहीं भी हो सकता है (स्याद् नास्ति)। 3. क्या घट यहाँ है भी और नहीं भी है? है भी और नहीं भी हो सकता ___ है(स्याद् अस्ति च नास्ति च।) 4. 'हो सकता है' (स्याद्)-क्या यह कहा जा सकता है?-नहीं स्याद्
यह अवक्तव्य है। 5. घट यहां हो सकता (स्यादास्ति)-क्या यह कहा जा सकता है?-नहीं ___ घट नहीं हो सकता है-यह नहीं कहा जा सकता। 6. घट यहां नहीं हो सकता (स्यान्नास्ति)-क्या यह कहा जा सकता है?
नहीं, घट यहाँ नहीं हो सकता-यह नहीं कहा जा सकता। 7. घट यहां हो भी सकता है, नहीं भी हो सकता है क्या यह कहा जा
सकता है?-नहीं, घट यहां हो भी सकता है, नहीं भी हो सकता है, यह नहीं कहा जा सकता।